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________________ खण्डन किया। उदाहरणार्थ-वेदान्त अभिमत वस्तु-स्वरूप के संदर्भ में एकान्त नित्य वस्तु किसी भी प्रकार से (क्रम अथवा यौगपद्य) क्रिया करने में असमर्थ है अत: कूटस्थ नित्यता उसका स्वरूप नहीं हो सकती। प्रमाणमीमांसा में हेमचन्द्र लिखते हैअनर्थक्रियाकारित्वादवस्तुत्वप्रसंग:- इत्येकान्त नित्यात् क्रमाक्रमाभ्यां व्याप्तार्थक्रिया व्यापकानुपलब्धिबलात् व्यापकनिवृतौ निवर्तमान व्याप्यमर्थक्रियाकारित्वं निवर्तयति, तदपि स्वव्याप्यं सत्वमित्यसन् द्रव्यैकान्तः। इसी प्रकार बौद्ध मत में पदार्थ की स्थिति क्षणिक होने से उसमें देशगत और कालगत दोनों ही रूपों में क्रिया संभव नहीं है। इसीलिए एकान्त अनित्यता भी वस्तु का स्वरूप नहीं हो सकती है। जैनाभिमत में द्रव्य-पर्यायात्मकता अथवा नित्यानित्यता वस्तु स्वरूप बन सकता है इस स्वरूप के रहते हुए वस्तु निर्बाध रूप से क्रिया कर सकती। प्रमाणमीमांसा में इस तथ्य की पुष्टि इन सूत्रों के द्वारा की गई है-प्रमाणस्य विषयो द्रव्यपर्यायात्मकं वस्तु, अर्थक्रिया सामर्थ्यात्, तल्लक्षणत्वाद् वस्तुनः (1/3032)। इस प्रकार स्पष्ट है कि अस्तित्व का आधार क्रिया है। जैन दर्शन में प्रत्येक पदार्थ अथवा अस्तित्व मात्र के साथ क्रिया का सम्बन्ध प्रारंभ से मान्य रहा है। क्रिया के सूक्ष्मतम रूप को परिणमन कहा गया है। वह हर पदार्थ में विद्यमान है। यह प्रत्येक पदार्थ में सतत होती रहती है। जीव जीव रूप में परिणमन कर रहा है और अजीव अजीव रूप में। अस्तित्व और नास्तित्व जैसे वस्तुभूत धर्म भी परिणमन कर रहे है।भगवती सूत्र में कहा-अस्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ,नत्थितं,नत्थित्ते परिणमइ (1/3/133) प्रत्येक पदार्थ में परिणमन दो रूपों में संभव है- सांयोगिक या विसदृश तथा स्वाभाविकया सदृश। सांयोगिक परिणमन अन्यान्य पदार्थों के योग से होता है, स्वाभाविक वस्तु में स्वत:होता है। पुद्गल के योग से जीव में होनेवाला अथवा जीव के योग से पदगल में होनेवाला परिवर्तन विसदृश परिणमन है। इसके विपरीत वस्तु का अपने स्वरूप में ही प्रतिक्षण परिवर्तित होते रहना स्वाभाविक परिणमन है। उदाहरणार्थ परमाणु के रूप, रस, गंध, वर्ण में बिना किसी अन्य निमित्त के स्वतः परिवर्तन होता है, जीव के ज्ञान और दर्शन में परिवर्तन होता रहता है। यह स्वाभाविक या सदृश परिणमन है यह सामान्यतः दृष्टिगोचर नहीं होता है। परिणमन का यह सिद्धांत पाश्चात्य जगत् में (Theory of Becoming) के रूप में चर्चित रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में क्वाण्टम के सिद्धांत से भी यही प्रमाणित हो रहा XXX
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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