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________________ व्याप्तार्थ क्रिया व्यापकानुपलब्धिबलात् व्यापकनिवृतौ निवर्तमान व्याप्यमर्थक्रिया कारित्वं निवर्तयति, तदपि स्वव्याप्यं सत्त्वमित्यसन् द्रव्यैकान्तः।' दूसरे शब्दों में, सत्पदार्थ त्रिलक्षणात्मक है - उत्पाद्व्ययध्रौव्ययुक्तं सत्। पदार्थ एक रूप में उत्पन्न होता है। कुछ अवधि के बाद दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाता है। परिवर्तन के बावजूद भी अपने अस्तित्व को बनाये रखता हैं उत्पाद और व्यय दोनों परिणमन की आधार भूमि है। ध्रौव्य उनका अन्वयी-सूत्र है। ध्रौव्य प्रकम्पन के मध्य अप्रकम्पन की स्थिति है। उत्पाद-व्यय अप्रकम्प की परिक्रमा करता हुआ परिवर्तन है। ध्रौव्य उत्पाद-व्यय को गति देता है किन्तु साथ में अस्तित्व की मौलिकता को सुरक्षित रखता है। कोई भी अस्तित्व अशाश्वत नहीं है, परिवर्तन की मर्यादा से मुक्त भी नहीं है। कहा भी गया है द्रव्यं पर्यायवियुतं, पर्यायाः द्रव्यवर्जिताः। क्व कदा केन किंरूपाः, दृष्टाः मानेन केन वा। ध्रौव्य की तरह उत्पाद-व्यय भी सत् का ही स्वभाव है। द्रव्य और पर्याय का सह -अस्तित्व है। एक ही वस्तु में विरोधी धर्मों का सहवास समस्या नहीं है। विरोध की स्थिति तब आती है जब एक ही दृष्टि से तीनों की व्याख्या की जाये। उक्त प्रसंग में उत्तर पर्याय की अपेक्षा उत्पाद, पूर्व पर्याय की अपेक्षा विनाश तथा मूलभूत द्रव्य की दृष्टि से ध्रौव्य को स्वीकार किया गया है। उत्पाद के समान व्यय अथवा व्यय के समान उत्पाद तथा ध्रौव्य को मान्यता दें तो विरोध की स्थिति बनती है। किन्तु यहां उत्पाद-व्यय का होता है। किसी भी सत्पदार्थ का आत्यन्तिक विनाश और असत्पदार्थ का उत्पाद नहीं होता है। गुणदृष्टि से पदार्थ स्थाई और पर्याय दृष्टि से वे उत्पत्ति और विनाश की प्रक्रिया से गुजरते हैं। पंचास्तिकाय में कहा है भावस्स णत्थि णासो, णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो। गुणपजएसु भावा, उप्पादव्ययं पकुव्वंति।। पर्याय जगत् अतीत का प्रतिबिम्ब और अनागत योग्यताओं का अक्षय कोष है। परिणमन के सिद्धांत का कोई अपवाद नही। प्रत्येक सत् को परिवर्तन के रास्ते से गुजरना पड़ता है। चाहे आने वाली पर्याय सदृश-असदृश, अल्प सदृश-अर्धसदृश और विसदृश ही क्यों न हो। परिवर्तन की इस परम्परा में प्रत्येक द्रव्य स्वयं उपादान है। अन्य द्रव्य निमित्त 278 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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