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________________ निरोध हो जाता है। काययोग के निरोध काल में अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में वेदनीयादि तीन कर्मों में से प्रत्येक कर्म की स्थिति को अपवर्तनाकरण द्वारा घटाकर गुणश्रेणी क्रम द्वारा कर्म-प्रदेशों की रचना अयोगी अवस्था के कालप्रमाण के समान बनाता है। इस अवस्था का कालमान अ, इ, उ, ऋ, ल, पंच ह्रस्वाक्षरों के उच्चारण जितना है। मुक्त जीवों में गति क्रिया ___ भगवती सूत्र में अकर्मा की गति के हेतुओं का वर्णन करते हुए कहा-निस्संगता, निरंजनता, गति - परिणाम, बंधन - छेदन, निरिन्धनता आदि कारणों से अकर्मा जीव भी गति करते हैं। जैसे- अग्नि, शिखा की स्वभावतः ऊर्ध्वगति है वैसे ही अकर्मा की ऊर्ध्व गति होती है।149 तत्त्वार्थ सूत्र में उपर्युक्त कारणों का ही समर्थन किया गया है। वहां मुक्त जीव के ऊर्ध्वगमन के चार कारण बताये हैं-150 (1) पूर्व प्रयोग, (2) संग का अभाव, (3) बंधन-मुक्ति,(4) गति-परिणाम। इस प्रकार जैन दर्शन की साधना बंध से मोक्ष प्राप्ति की साधना है। बंधन तलहटी है। मोक्ष शिखर है। बंध-व्यवस्था की भांति मोक्ष-व्यवस्था का संचालन भी क्रिया के द्वारा होता है। सूक्ष्म अध्यवसाय जहां एक और कर्म संस्कार तथा जीव के मध्य संपर्क सूत्र का कार्य कर रहे हैं, वहां दूसरी ओर संपर्क-विच्छेद में भी इनका योगदान है। क्रिया की इस उभयरूपता को देखते हुए आचारांग का यह सूक्त सार्थक प्रतीत होता है कि 'जे आसवा ते परिसवा, जे परिसवा ते आसवा' अर्थात् जो कर्म-बंधन के हेतु हैं, वे ही कर्म-मुक्ति के उपाय हैं।151 ___एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय से मुक्तावस्था तक का विकास अध्यवसायों की शुद्धि और आत्मपुरूषार्थ का परिणाम है। उत्क्रमण की इस स्थिति में शुभ और शुद्ध (राग-द्वेष विमुक्त) अध्यवसायों की महनीय भूमिका है। चेतना के ऊर्ध्वारोहण की यह यात्रा क्रिया से अक्रिया की ओर प्रस्थान है। साधना के विभिन्न सोपानों का आरोह करते हुए साधक सिद्धि तक पहुंचता है, साधना स्वयं साध्य बन जाती है। संदर्भसूची 1. पातंजल योग दर्शन; 1/2 - योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। 2. संयुक्त निकाय; 5/10 3. श्री भिक्षु शब्दानुशासन धातुपाठ, गण 7- युज्यति योगे 4. वही-गण; 4 - युजिंङ समाधौ 270 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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