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________________ तत्त्वार्थ सूत्र में गुणस्थान शब्द नहीं देखा जाता। गोम्मटसार में य जीव समास' नाम है।135 धवला के अनुसार जीव का गुणों में अवस्थित रहना जीव समास है।136 गुणस्थान, जीवसमास या जीवस्थान इनमें सिर्फ संज्ञा भेद है, अर्थ की भिन्नता नहीं है। प्रथम गुणस्थान में ईर्यापथिक के अतिरिक्त चौबीस क्रियाएं हैं। दूसरे और चौथे गुणस्थान में तैईस हैं। ईर्यापथिक तथा मिथ्यादर्शन को छोड़ कर पांचवें में बाईस हैं। छठे में केवल दो क्रियाएं हैं- आरम्भिया और मायावत्तिया। 7 से 10 गुणस्थान तक मायावत्तिया, 11-12-13 वें गुणस्थान में एक ईर्यापथिक-क्रिया तथा चौदहवें में क्रिया का अभाव हो जाता है। गुणस्थान की रचना का मुख्य आधार कर्म विशोधि है। आत्मा की आध्यात्मिक उत्क्रांति का वैज्ञानिक निरूपण है- गुणस्थान। संसार अनन्त जीव-राशि का महासागर है। सभी जीवों में आध्यात्मिक विकास की भिन्नता प्रतीत होती है। अनन्त भिन्नताओं को चौदह विभागों में विभाजित किया है। प्रथम और तृतीय गुणस्थान अध्यात्म- विकास की न्यूनतम अवस्था है। चौथे से क्रमिक ऊर्ध्वारोहण प्रारंभ होता है। क्रमिक विकास होते-होते चौदहवें में पूर्ण विकास होता है। योगविद् आचार्यों ने बारहवें गुणस्थान की तुलना संप्रज्ञात योग और तेरहवें - चौदहवें को असंप्रज्ञात योग से की है।137 ___विकासशील अवस्था, मध्य अवस्था है उसका एक छोर अविकास का है, दूसरा पूर्ण विकास का। इस आधार पर आत्मा की तीन अवस्थाएं बनती हैं -बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा। पहले से तीसरे तक बहिरात्मा, चौथे से बारहवें तक अन्तरात्मा, शेष दो में परमात्म स्वरूप का चित्रण है। ये आध्यात्मिक विकास की चौदह सीढ़ियां है। 1. मिथ्यादृष्टि गुणस्थान- जिसकी दृष्टि विपरीत होती है, उस व्यक्ति में पाई जाने वाली आध्यात्मिक निर्मलता को मिथ्या दृष्टि गुणस्थान कहते हैं। मिथ्यादृष्टि में दर्शन मोह का उदय प्रधान है। उदय की मुख्यता से इसे औदयिक भाव भी अनेक आचार्यों ने माना है। यद्यपि ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का क्षयोपशम भी आंशिक रूप से होता है। उस क्षयोपशम के आधार पर समवायांग सूत्र में इस गुणस्थान को क्षायोपशिक भाव कहा है। इसमें विरोधाभास नहीं, केवल मुख्य और गौण का अंतर है। 2. सास्वादन गुणस्थान-सास्वादन अर्थात् स्वाद युक्त। औपशमिक सम्यक्त्व से पतित होने वाले मिथ्यात्वाभिमुख जीव के सम्यक्त्व का आंशिक आस्वादन शेष रहता है। इस दृष्टि से उसे सास्वादन कहा है।138 260 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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