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________________ दिगम्बर परम्परानुसारी तत्त्वार्थ सूत्र तथा उसके व्याख्या ग्रंथ तत्त्वार्थ वार्त्तिक में प्रायश्चित के नौ ही प्रकार निर्दिष्ट है । 115 ( 7 ) विनय - आभ्यन्तर तप का यह दूसरा प्रकार है । विनय का एक अर्थ कर्मपुद्गलों का विनयन, पृथक्करण का प्रयत्न है। इस परिभाषा के अनुसार ज्ञान, दर्शन आदि को विनय कहा है क्योंकि उनके द्वारा कर्म - पुद्गलों का विनयन होता है। विनय का दूसरा अर्थ - भक्ति- बहुमान आदि करना है । इस अर्थ के अनुसार ज्ञान - विनय आदि का अर्थ ज्ञान आदि का आदर करना है। कर्मों का अपनयन करना विनय का आध्यात्मिक पक्ष है। अहं विसर्जन, बड़ों का बहुमान और उनके प्रति असद्-व्यवहार का वर्जन विनय का व्यावहारिक पक्ष है। विनय का व्यवस्थित निरूपण औपपातिक में मिलता है। 116 ठाणांग 1 17 भगवई 1 18 में विनय के सात प्रकारों का निर्देश हैं - ज्ञान-विनय, दर्शन - विनय, चारित्र - विनय, मनविनय, वचन-विनय, काय-विनय, लोकोपचार - विनय । अनाशातना के 45 प्रकार, चारित्र विनय के प्रकार 5, मन विनय के अप्रशस्त प्रशस्त रूप 24, वचन 4, काय 14, लोकोपचार के 7 प्रकार | विनय के ही भेद हैं। 119 ( 8 ) वैयावृत्य - वैयावृत्य अर्थात् सेवा । आचार्य आदि की आहार आदि के द्वारा सेवा करना वैयावृत्य कहलाता है। सहयोग की भावना से सेवाकार्य में जुड़ना वैयावृत्य है। इस तप की आराधना करने वाला अपेक्षा को समझकर सेवाभावना और कर्तव्य-निष्ठा से छोटे-बड़ों का सहयोगी बनता है। आध्यात्मिक लक्ष्य से की जाने वाली सेवा ही तप की श्रेणी में आती है क्योंकि वही निर्जरा का कारण है। अग्लान भाव से वैयावृत्य करनेवाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा, महापर्यवसान वाला होता है। वैयावृत्य के दस प्रकार हैं। 120 1. आचार्य का वैयावृत्त्य - भव्य जीव जिनकी प्रेरणा से व्रतों का आचरण करते हैं, उनको आचार्य कहा जाता है। उनका वैयावृत्त्य करना । 2. उपाध्याय का वैयावृत्त्य - जो मुनि व्रत, शील और भावना के आधार है, जिनके पास जाकर विनय से श्रुत का अध्ययन करते हैं, उन्हें उपाध्याय कहा जाता है। उनका वैयावृत्त्य करना। 3. तपस्वी का वैयावृत्त्य- मासोपवास आदि तप करने वाला तपस्वी कहलाता है, उनका वैयावृत्त्य करना । 254 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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