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________________ (5) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि पर्यायों से भक्तपान अवमोदरिका करना पर्याय अवमौदर्य है। 93 ( 3 ) भिक्षाचरी - उत्तराध्ययन, औपपातिक, भगवती और स्थानांग में इसके लिए भिक्षाचर्या तप नाम मिलता है। समवायांग 4 तत्त्वार्थ ” दशवैकालिक निर्युक्ति" में वृत्तिसंक्षेप और वृत्तिपरि-संख्यान नाम उपलब्ध होता है। अनशन की तरह भिक्षाटन में भी कष्ट होने से साधु को निर्जरा होती है। इसलिये इसे तप माना गया है अथवा विशिष्ट या विचित्र प्रकार के अभिग्रह संयुक्त होने से वृत्ति संक्षेप तप है।” औपपातिक" तथा भगवती” में वृत्ति-संक्षेप के तीस प्रकार भी बताये हैं किन्तु यह भेद-संख्या अन्तिम नहीं है । स्थानांग में पुरिमार्द्ध चर्या, भिन्न पिण्ड चर्या-दो नाम और मिलते हैं। मूलाराधना में वृत्ति - संक्षेप के आठ प्रकारों का उल्लेख है। 100 वहां गोचराग्र के छह प्रकार हैं (1) गत्वा प्रत्यागता (4) पेलविया (2) ऋजुवीथि (5) शंबुकावर्ता ( 3 ) गो - मूत्रिका (6) पंतग वीथि ( 4 ) रस परित्याग - रसों के परिवर्जन को रस परित्याग तप कहते हैं । 100 औपपातिक सूत्र में इसके नौ प्रकारों का निर्देश है 1 ) निर्विकृति - विकृति का त्याग 2) प्रणीत रस परित्याग - स्निग्ध-गरिष्ठ आहार का त्याग। 3) आचाम्ल - अम्ल रस मिश्रित अन्न का आहार । 4) अवश्रावण गति सिक्थ भोजन - औसामन से मिश्रित अन्न का आहार । 5) अरस आहार - हींग आदि से असंस्कृत आहार । 6) विरसाहार - पुराने धान्य का आहार । 7) अन्त आहार - तुच्छ धान्य का आहार । 8 ) प्रान्ताहार - ठंडा आहार । 9) रुक्ष आहार - रुखा आहार | " 102 जिन वस्तुओं से जीभ और मन विकृत होते हैं, उन्हें विकृति कहा जाता है। विकृत्तियों के निषेध के पीछे महाविकार तथा महाजीवोपघात मुख्य हेतु है । औपपातिक टीका में उद्धृत गाथा में तैल आदि से तली वस्तु को भी विकृति कहा है। क्रिया और अन्तक्रिया 251
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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