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________________ वर्ण, शब्द और श्लोक के लिए तप करें, अपितु निर्जरा के अतिरिक्त अन्य किसी भी उद्देश्य से तप नहीं करें। निष्कर्ष की भाषा में उत्तम तप वही है जो आत्मशुद्धि के लिये किया जाये। वाचक उमास्वाति ने भी तप और परिषह-जय कृत निर्जरा को ही कुशलमूला, शुभानुबंधक तथा निरनुबंधक कहा है। अबुद्धिपूर्वा निर्जरा को अकुशलानुबंधक कहा है। 79 आचार्य भिक्षु और तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जीतमलजी ने अनुकंपा की चौपाई, आचार की चौपाई, जिनाग्या की चौपाई, भगवती जोड़, श्रावक ना बारह व्रत आदि ग्रंथों में विस्तार से सकाम अकाम निर्जरा पर विचार किया वह इस प्रसंग में मननीय है। स्थानांग सूत्र में 'एगा निज्जरा' कहकर निर्जरा को एक ही प्रकार का कहा है। 80 दूसरी ओर 'बारसहा निज्जरा सा' कहकर निर्जरा बारह प्रकार की बतलाई है। ऐसा क्यों? इसका कारण यह है कि अग्नि एक रूप होने पर भी निमित्त के भेद से काष्ठाग्नि, पाषाणाग्नि आदि पृथक्-पृथक् संज्ञा प्राप्त कर अनेक प्रकार की हो जाती है। वैसे ही कर्म परिशाटन रूप निर्जरा तो एक ही है किन्तु वह परिशाटन भिन्न-भिन्न निमित्तों से होने से सकाम निर्जरा के बारह प्रकार हैं। अत: बारह भेद के पीछे भी कारण है इनमें भी प्रत्येक के छः प्रकार हैं- बाह्य और आभ्यन्तर । निर्जरा के अपने विशिष्ट प्रयोजन हैं। कारण में कार्य का उपचार करने पर निर्जरा के बारह भेद किये गये हैं। बारह प्रकार पुनः दो भागों में विभक्त हो जाते हैं - बाह्य एवं आभ्यंतर। जो बाह्य द्रव्य के आलम्बन से होता है और दूसरों के दृष्टिपथ में आता है, उसे बाह्य तप कहते है । मन का नियंत्रण करने वाला आभ्यन्तर तप है। निर्जरा के दो प्रकार हैं- बाह्य और आभ्यन्तर । इनमें से प्रत्येक के छः प्रकार हैं। बाह्य निर्जरा के छ: प्रकार निम्नानुसार हैं- 1. अनशन, 2. अवमौदर्य, 3. वृत्ति -संक्षेप, 4. रस - परित्याग, 5. कायक्लेश, 6. प्रतिसंलीनता । आभ्यन्तर निर्जरा के प्रकार- 1. प्रायश्चित, 2. विनय, 3. वैयावृत्य, 4. स्वाध्याय, 5. ध्यान, 6. व्युत्सर्ग । (1) अनशन - अनशन का सीधा अर्थ आहार - त्याग से है। वह त्याग कम से कम एक दिन रात्रि का और अधिकतम छह महीने का हो सकता है। इसलिये अनशन दो अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया 248
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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