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________________ तक पुराने कर्मों के पृथक् होते रहने पर भी जीव कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता। इसलिये मुक्ति के लिए संवर और निर्जरा दोनों अनिवार्य है। बौद्ध परम्परा में स्वतन्त्र रूप से निर्जरा के सम्बन्ध में उल्लेख नहीं देखा जाता किन्तु निर्जरा प्रत्यय को मान्यता दी है। उन्होंने तपस्या के स्थान पर चित्तविशुद्धि पर अधिक बल दिया है। जैन दर्शन में निर्जरा शब्द का प्रयोग जिस अर्थ में किया है, वह गीता में भी उपलब्ध है। "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः" - कर्म करने का तुम्हें अधिकार है, फल की आकांक्षा मत करो। यह निष्काम कर्मयोग महावीर की सकाम निर्जरा का ही एक रूप है। किसी कामना से जुड़ी हुई कोई भी प्रवृत्ति सकाम निर्जरा के अन्तर्गत नहीं आती। निर्जरा के प्रकार निर्जरा के दो प्रकार हैं- सकाम और अकाम । स्वाभाविक रूप में कालावधि समाप्त होने पर कर्म अपना फल देकर आत्मा से अलग हो जाता है, उसे अकाम निर्जरा कहते हैं। इसे अनौपक्रमिक निर्जरा भी कहते हैं। यह प्राणी मात्र के होती है। यह अकाम निर्जरा इसलिये है कि इसके लिए व्यक्ति का संकल्प या प्रयत्न विशेष नहीं होता। कर्म - क्षय की अभिलाषा से व्रत आदि विविध प्रयत्नों के द्वारा जो निर्जरा होती है वह सकाम निर्जरा है। आगमों में अकाम निर्जरा शब्द मिलता है। सकाम शब्द अनुपलब्ध है किन्तु अकाम के प्रतिपक्षी तत्त्व के रूप में वह अपने आप फलित हो जाता है। प्रकारान्तर से चन्द्रप्रभ चरित में इन्हें क्रमश: कालकृत और उपक्रमकृत निर्जरा तथा विपाकजा और अविपाकजा निर्जरा भी कहा जाता है। नारकादि जीवों के स्वाभाविक निर्जरा होती है। वह कालकृत निर्जरा है। तपस्या से होने वाली निर्जरा उपक्रम कृत निर्जरा है।74 तत्त्वार्थसार में कर्मों के फल देने के बाद होने वाली निर्जरा को विपाकजा और अनुदीर्ण कर्मों को तपस्या आदि से उदयावलि में लाकर वेदने से जो निर्जरा होती है उसे अविपाकजा निर्जरा कहा है। अकाम निर्जरा तब होती है जब कोई क्रिया कर्म-क्षय की दृष्टि से नहीं की जाती। यह कर्म-भोग के परिणाम स्वरूप होने वाली सहज है निर्जरा कर्मक्षय की अभिलाषा से की जानेवाली क्रिया अनुपम निर्जरा की हेतु बनती है। सकाम निर्जरा की तुलना में 246 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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