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________________ तीन गुप्ति - कर्म - बंधन के हेतुओं से आत्मा का बचाव करने की चेष्टा विशेष गुप्त कहते हैं । 48 मन-वचन-काय इन तीनों योगों का सम्यक् निग्रह गुप्ति है। 49 इसके तीन भेद हैं- मनोगुप्ति, वाक्गुप्ति, काय इन गुप्ति। अभयदेवसूरि ने तीनों ही गुप्तियों को अकुशल से निवृत्ति और कुशल में प्रवृत्ति रूप कहा है। 50 उतराध्ययन के अनुसार समस्त शुभयोगों से निवृत्ति गुप्ति है। 51 श्री अकलंक भी गुप्ति का स्वरूप निवृत्ति परक ही मानते हैं। पांच समिति - सम्यक् प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। 52 समिति पांच हैं- ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेप, उत्सर्ग समिति । निरवद्य प्रवृत्तियों के विधान को 'समिति' नाम से अभिहित किया है। समितियां प्रवृत्ति रूप है। इन्हें संवर का भेद कैसे कहा जाये ? इस सन्दर्भ में श्री अकलंक कहते हैं-जाना, बोलना, खाना, रखना, उठना, और मलोत्सर्ग आदि क्रियाओं में अप्रमत्त, सावधानी से प्रवृत्ति करने पर इनके निमित्तों से आनेवाले कर्मों का संवर हो जाता है। 53 गुप्तियों, समितियों का उल्लेख स्थानांग, समवायांग, उत्तराध्ययन आदि आगमों में मिलता है। 54 इन्हें प्रवचन माता भी कहा है। दस यति धर्म- जो इष्ट स्थान में धारण करे, उसे धर्म कहते है। 55 धर्म के दस प्रकार हैं- क्षमा, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, संयम, तप, त्याग और ब्रह्मचर्य । बारह अनुप्रेक्षा- भावना का दूसरा नाम अनुप्रेक्षा है। बार-बार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। अनुप्रेक्षा के अनित्य, अशरण, भव, एकत्व आदि के भेद से बारह प्रकार हैं। बाईस परीषह - उत्तराध्ययन" समवायांग 57 भगवती 8 में परीषहों की चर्चा मिलती है। स्वीकृत मार्ग से च्युत न होने के लिये तथा कर्म-निर्जरा के लिये जो सहा जाता है, उसे परीषह कहते है । परीषह बाईस हैं। आचार्य भिक्षु के अभिमत से ये संवर के भेद नहीं, निर्जरा के भेद हैं। 59 चारित्र सर्व सावद्य योगों (पापकारी), प्रवृत्तियों का त्याग करना चारित्र है । वह पांच प्रकार का है - सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्ध, सूक्ष्म- संपराय और यथाख्यात चारित्र। आते हुए कर्मों को रोकना संवर है। उपरोक्त सभी संवर के रूपों से कर्म-बंधन की तु भूत प्रवृत्तियों (क्रियाओं) का निरोध होता है। इसलिये इन्हें संवर के सत्तावन क्रिया और अन्तक्रिया 241
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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