SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर परम्परा के अनुसार मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति और योग निरोध रूप चार प्रकार के संवर है।42 चार संवर की सूचक परम्परा आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा समर्थित है। (3) पांच प्रकार- 1. सम्यक्त्व संवर, 2. विरति संवर, 3. अप्रमाद संवर, 4. अकषाय संवर, 5. अयोग संवर । 43 सम्यक्त्व-यथार्थ दृष्टिकोण, यथार्थतत्त्व श्रद्धा का नाम सम्यक्त्व संवर है, विपरीत श्रद्धा का त्याग करना सम्यक्त्व है। यह मिथ्यात्व आश्रव का प्रतिपक्षी है। आचार्य भिक्षु ने नवपदार्थ में इसके दो भेद बतलाएं हैं- 1. विपरीत श्रद्धा का त्याग 2. नौ पदार्थों में यथातथ्य श्रद्धान। विरति-संयमित जीवन चर्या, त्याग भाव। इसके दो रूप है - देशव्रत और सर्वव्रत। असत् प्रवृत्तियों का आंशिक त्याग देशव्रत संवर और उनका जीवनभर के लिये सब प्रकार से त्याग सर्वव्रत संवर है। अप्रमाद- स्व जागृति। यह आत्म जागृति का जनक है, प्रमाद का सेवन न करना अप्रमाद है, प्रमाद का अर्थ अनुत्साह है। आत्म स्थित अनुत्साह का क्षय हो जाना अप्रमाद संवर है। अकषाय- मनोवेगों का अभाव। कषाय को सर्वथा क्षीण कर देना अकषाय संवर है। अयोग- अक्रिया प्रवृत्ति का निरोध करना संवर अथवा अप्रकंप अवस्था अयोग संवर हैं। प्रवृत्ति दो प्रकार की है-शुभ और अशुभ। अशुभ प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध व्रत संवर और शुभ प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध अयोग संवर है। अयोग संवर की स्थिति में पहुंचने के तत्काल बाद जीव मुक्त हो जाता है। (4) आठ प्रकार स्थानांग सूत्र में संवर के आठ भेदों का निरूपण है451. श्रोत्रेन्द्रिय संवर 2. चक्षु इन्द्रिय संवर 3. घ्राणेन्द्रिय संवर 4. रसनेन्द्रिय संवर 5. स्पर्शनेन्द्रिय संवर 6. मन संवर 7. वचन संवर 8. शरीर संवर 238 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy