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________________ है। जिसके द्वारा दुर्गति के हेतुभूत कर्म का बंध होता है, उसे अधिकरण कहते है। अधिकरण को सामान्य भाषा में शस्त्र कहा जाता हैं। अधिकरण दो प्रकार का है-जीवाधिकरण, अजीवाधिकरण। दोनों ही अधिकरण जीव की प्रत्येक प्रवृत्ति यानी क्रिया में निमित्तभूत अथवा विषयभूत होते हैं। इसलिये निमित्त के कारण दोनों को साम्परायिक आश्रव का अधिकरण कहा गया है। कोई भी व्यक्ति इन्हें निमित्त बनाकर ही क्रिया करता है। इस अपेक्षा से वह तन्निमित्तक साम्परायिक आश्रव का बंधक होता है। द्रव्य, भाव के भेद से जीवाधिकरण दो प्रकार का है। जीवों के छेदन-भेदन का हेतु जो द्रव्य शस्त्र है, वही द्रव्याधिकरण है। इसके लौकिक-लोकोत्तर भेद भी हैं। कुठार, असि आदि लौकिक शस्त्र हैं। दहन, विष, लवण, क्षार, स्नेह, अम्ल तथा अनुपयुक्त व्यक्ति के मन, वचन, काया के भेद से इसके नौ प्रकार हैं। इन्हें लोकोत्तर शस्त्र इसीलिये कहा कि कुठार, असि आदि लोक प्रसिद्ध शस्त्र हैं। वैसे दहन करना, जलाना आदि क्रियाएं शस्त्र रूप में प्रसिद्ध नहीं है। द्रव्य रूप इस शस्त्र का जीव-अजीव पर प्रयोग करने से साम्परायिक कर्म का बंध होता है। इसी प्रकार अनुपयुक्त व्यक्ति की मानसिक, वाचिक और कायिक क्रियाएं एवं चेष्टाएं भी कर्म-बंध का कारण है। आत्मा के तीव्र -तीव्रतर आदि जो भाव हैं, वे भावाधिकरण हैं। भावाधिकरण 108 प्रकार का है। उसका गणित इस प्रकार है - 1. सरंभ 2. समारम्भ 3. आरम्भ। इन्हें तीन योगों (मन, वचन,काय) से गुणन करने पर 9 प्रकार होते हैं। कृत, कारित, अनुमोदन से गुणा करने पर 9 x 3 = 27, क्रोध, मान, माया, लोभ से गुणा करने पर 27 x 4 = 108 प्रकार होते हैं। इस प्रकार कुल 108 भेद जीवाधिकरण के हैं।26 अजीवाधिकरण के चार प्रकार विभाग हैं- निर्वर्तनाधिकरण, निक्षेपाधिकरण, संयोगाधिकरण और निसर्गाधिकरण। निर्वर्तनाधिकरण- निर्वर्तना नाम रचना का है। रचना रूप अधिकरण निर्वर्तनाधिकरण कहलाता है। औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, और कार्मण इन पांच शरीरों के आकार अपने अनुरूप द्रव्यों से बनते हैं। ये आकार कर्म-बंध के कारण बनने से निर्वर्तनाधिकरण के अन्तर्गत लिये है। शरीर, मन और श्वासोच्छ्वास की रचना का होना मूल गुण निर्वर्तना है। उत्तर गुण निर्वर्तना में काष्ठकर्म, चित्रकर्म, लेप्यकर्म, पत्रच्छेद्य कर्म आदि समस्त क्रियाएं हैं। तलवार में मारने की क्षमता अथवा उसकी रचना मूलगुण निर्वर्तना है। उसमें तीक्ष्णता, उज्ज्वलता आदि उत्तर गुण निर्वर्तना है। 232 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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