SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग मनयोग काय योग ___मनयोग वचन योग काय योग सत्य असत्य मिश्र व्यवहार सत्य असत्य मिश्र व्यवहार औदारिक औदारिक मिश्र वैक्रिय वैक्रिय मिश्र आहारक आहारक मिश्र कार्मण योग और कर्मबंध भगवती सूत्र के अनुसार कर्मबंध के मूलतः दो कारण हैं- प्रमाद और योग। उदाहरणार्थ गौतम ने पूछा- भगवन! जीव कांक्षा मोहनीय कर्म बांधता है ? भगवान- गौतम! बांधता है। गौतम- भगवन् ! वह किन कारणों से बंधता है ? भगवान- गौतम! उसके दो हेतु है-प्रमाद और योग। गौतम- भगवन्! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ? भगवान-योग से। गौतम- योग किससे उत्पन्न होता है ? भगवान- शरीर से। गौतम- शरीर किससे उत्पन्न होता है ? भगवान-जीव से। तात्पर्य है कि जीव शरीर का निर्माता है। क्रियात्मक वीर्य का साधन शरीर है। शरीरधारी जीव ही प्रमाद और योग के द्वारा कर्म (कांक्षा-मोहनीय) का बंध करता है। प्रत्ययहेतु (परिणामी कारण) प्रमाद और निमित्त हेतु योग है। योग (क्रिया) का अस्तित्व तेरहवें गुणस्थान तक रहता है। कर्म बंध तेरहवें गुणस्थान तक निरन्तर होता रहता है। सकषायी के होने वाला सांपरायिक बंध है। अकषायी के ईर्यापथिक बंध है। कषाय रहित केवल योगजन्य बंध ईर्यापथिक है। यह ग्यारहवें से तेरहवें गुणस्थान तक पाया जाता है। इन गुणस्थानों में कषायों का अभाव है किन्तु योगों की चंचलता से बंध क्रिया और अन्तक्रिया 225
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy