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________________ आयु बंध के विषय में दो मतान्तर उपलब्ध होते हैं। 1.वर्तमान आयुष्य आवलिका के असंख्यात भाग जितना शेष रहने पर अग्रिम जन्म का आयुष्य बंध होता है। . 2.वर्तमान आयुष्य एक समय कम मुहूर्त जितना आयुष्य शेष रहने पर आयु बंध होता है। उत्तराध्ययन में भी उसका समर्थन है।72 3.गोम्मटसार की व्याख्या में दोनों मतों का उल्लेख है। वर्तमान आयुष्य समाप्ति के अनन्तर प्रथम समय में अगले जन्म के आयुष्य का वेदन प्रारंभ हो जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार अन्तराल गति में जीव आयुष्य सहित संक्रमण करता है। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने निश्चय और व्यवहार दोनों नयों से उसकी विस्तृत चर्चा की है। उसका निष्कर्ष यही है कि ऋजुगति में अग्रिम जन्म-स्थान में जाने तक पूर्वजन्म का आयुष्य होता है किन्तु वक्रगति के पहले समय में पूर्वजन्म का आयुष्य, दूसरे में अगले जन्म का आयुष्य प्रारंभ हो जाता है।3 तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने भी इस मत की पुष्टि करते हुए लिखा है प्रथम समय ना सिद्ध च्यार कर्मों ना अंश खपावे रे। चौथे ठाणे प्रथम उद्देशे, बुद्धिवंत न्याय मिलावे रे।।74 सिद्धसेन का अभिमत भिन्न है - ऋजुगति में जन्म स्थान तक जाने में पूर्वजन्म का आयुष्य होता है। वक्रगति में पहले समय में पूर्वजन्म का आयुष्य, दूसरे समय में अगले जन्म का आयुष्य का प्रारंभ हो जाता है। आयुष्य का अर्थ है- आयुष्य कर्म के पुदगल - स्कंधों की राशि। गति के बिना आयुष्य की व्याख्या नहीं की जा सकती। जिस जीव ने जिस गति में जाने की योग्यता अर्जित की है, उसके उसी गति के आयुष्य का बंध निश्चित होता है। आयुष्य के साथ 4 प्रश्न और जुड़े हुए हैं1. जीव किस गति में जायेगा? 2. वहां उसकी स्थिति क्या होगी? 3. वह ऊंचा-नीचा या तिरछा कहां जायेगा ? 4. वह दूरवर्ती क्षेत्र में जायेगा या निकटवर्ती ? क्रिया और पुनर्जन्म 201
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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