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________________ क्रिया और कर्मफल विचार कर्म और उसके फल (विपाक) की परम्परा से यह संसार-चक्र निरन्तर गतिशील है। कर्म-सिद्धांत की मुख्य रूप से तीन मान्यताएं हैं 1. प्रत्येक क्रिया का अपना परिणाम होता है। 2. उस परिणाम की अनुभूति वही व्यक्ति करता है जिसने कर्म किया है। 3. कर्म और उसके फल की प्रक्रिया अनादिकालीन है। कर्म फल का आधार : प्राकृतिक नियम व्यवहार जगत् में क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य देखी जाती हैं। दीवार पर गेंद को जितनी शक्ति से फेंकते है उतनी ही शक्ति से वह लौट आती है। गेंद फेंकना क्रिया है। लौट आना प्रतिक्रिया है। पहाड़ या किसी गुम्बज पर खड़े होकर आवाज करते हैं, प्रतिध्वनि के रूप में वह पुन: लौट जाती है। आवाज देना क्रिया है, प्रतिध्वनि प्रतिक्रिया है। प्रतिक्रिया के समय और स्वरूप में अन्तर हो सकता है किन्तु यह निश्चित है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। कर्म क्रिया है। कर्मफल, प्रतिक्रिया है। प्राकृतिक नियमों की तरह कर्म और कर्मफल की व्यवस्था भी निश्चित है। कृत कर्म का एक बार नहीं अनेक बार भी भोग किया जा सकता है। उसका कारण बंधन के हेतुभूत भावों की तीव्रता है। कालोदायी अणगार भगवान महावीर से पूछते हैं - भंते ! जीवों के किए हुए पाप कर्मों का परिपाक क्या पापकारी होता है ? भगवान ने कहा- हां, होता है। कालोदायी- कैसे होता है ? भगवान महावीर- कालोदायी ! जैसे कोई पुरूष मनोज्ञ स्थालीपाक शुद्ध (परिपक्क) अठारह प्रकार के व्यंजनों से परिपूर्ण विषयुक्त भोजन करता है, वह आपातभद्र है किन्तु परिणाम भद्र नहीं है। वैसे ही प्राणातिपात आदि अठारह पाप कर्म का सेवन आपातभद्र संभव हैं किन्तु परिणाम भद्र नहीं। कालोदायी- भंते ! कल्याणकारी कर्मों का परिपाक कल्याणकारी होता है ? भगवान महावीर- हां, होता है। कालोदायी- कैसे? क्रिया और पुनर्जन्म 189
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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