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________________ लेश्या और अध्यवसायों की निर्मलता पर निर्भर है। भावों की विकृति रोग का हेत है। उदग्र उत्कंठा, अत्यधिक लालसा थाइराइड को प्रभावित करती है। परिणाम स्वरूप थाइरोक्सिन की क्रिया बदल जाती है, चयापचय की क्रिया में अन्तर आ जाता है। उदासी, अवसाद, चिड़चिड़ापन, मानसिक तनाव आदि बीमारियों का मूल भावों का असंतुलन है। इसलिये शरीर और मन से परे भाव जगत को समझना भी जरूरी है। प्राचीन चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद का अभिमत इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। तदनुसार त्रिदोष से केवल शरीर और मन ही बीमार नहीं होता, भाव जगत् भी प्रभावित होता है। वायु का प्रकोप बढ़ने से भय अधिक सताता है। पित्त प्रकोप से क्रोध तथा कफ से तन्द्रा, आलस्य आदि बढ़ते हैं। मनोविज्ञान में किस भाव से कौनसी बिमारियां होती हैं- इसका विचार किया गया हैं। उदाहरणार्थ चिन्ता से - रक्त का गाढ़ा बनना, क्षय, कैंसर, हृदय रोग हार्टफैल, तथा मस्तिक विकृत और रक्त दूषित आदि रोग। घृणा से - अल्सर, चर्मरोग, पाचनतंत्र की अस्त-व्यस्तता, जीवन से विरक्ति, अरूचि तथा गुर्दे विकृत एवं रक्त विषैला बनता है। भावुकता से - स्नायुओं की दुर्बलता। लोभ से - अपच, दस्त। ईर्ष्या से - एसीडीटी, अल्सर, तथा यकृत और तिल्ली प्रभावित। अहंकार से - पीठ दर्द, साइटिका, संधिवात। निराशा से - मन्दाग्नि संकीर्णता से - कोष्ठबद्धता आदि। क्रोध से - तनाव, अपच, अम्लपित्त, रक्तचाप, शरीर का कंपन। भय से - हृदय की धड़कन बढ़ना, घबराहट, मुंह सूखना, अनिद्रा, भूख का बंद होना इत्यादि।66(ग) आज Psychosometic Deseases शब्द अधिक प्रचलित है जिसका अर्थ है- मनोकायिक बीमारी। ये वे बीमारियां हैं जो भावात्मक असंतुलन से उत्पन्न होती हैं। मेडीकल साइंस की दृष्टि से भावात्मक असंतुलन के कारण अन्त: स्रावी ग्रंथियों के स्राव बदल जाते हैं। जैसे भय की प्रबलता से एड्रीनल ग्लैण्ड सक्रिय हो जाती क्रिया और कर्म - सिद्धांत 155
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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