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________________ चित्त और मन के लेखक आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार1. लाल-स्नायु मंडल में स्फुर्ति। 2. नीला- स्नायविक दुर्बलता, धातुक्षय एवं स्वप्नदोष में लाभ। ठंडा, शान्तिदायक, संकोचक, कीटनाशक, दिमागी टॉनिक, पित्त नाशक। 3. पीला- मस्तिष्कीय शक्ति का विकास, कब्ज, प्लीहा, यकृत के रोगों का उपशमन। हरा- ज्ञान-तंतुओं और स्नायु-मंडल सशक्त बनते हैं। सन्तुलक, गंदगी निष्कासक, रक्त शोधक, कब्ज नाशक, वात नाशक, अल्सर से राहत। नारंगी- दमा और वातजन्य व्याधियों की चिकित्सा । गर्म, उत्तेजक, विस्तारक, शक्तिदायक, पाचक व कफनाशक।26(क) रंग चेतना के सभी स्तरों पर प्रवेश कर भौतिक तथा आध्यात्मिक प्रभाव दिखाता है इसलिये ओसले (Ouseley) ने प्रत्येक रंग के सात पहलु माने हैं- 1. शक्ति 2. चेतना 3. चिकित्सा 4. प्रकाश 5. आपूर्ति 6. प्रेरणा 7. पूर्णता। रंगों के भावात्मक पक्ष की रंग-मनोविज्ञान के साथ तुलना करें तो लेश्या का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण स्वयं सार्थक हो जाता है। रंग के माध्यम से विचारों, आदर्शों, संवेगों. क्रियाओं. और इन्द्रिय जनित उत्तेजनाओं की अभिव्यक्ति होती है। इस प्रकार रंग के अध्येताओं ने रंगों का अनेक दृष्टियों से अध्ययन किया है और उसके परिणामस्वरूप बनने वाले व्यक्तित्व के गुण-दोषों की मीमांसा की है। लेश्या और तरंग-दैर्घ्य ___ रंग-चिकित्सा (कलर थेरेपी) का आविर्भाव रंगों का शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्तर पर होने वाले प्रभावों के आधार पर हुआ है। रंग के द्वारा मानव की भावात्मक और शारीरिक चिकित्सा में सफलता प्राप्त हुई है। पाश्चात्य देशों में इस विषय में काफी शोध की गई है जिसके परिणाम काफी आशाजनक रहे हैं।27 आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से विद्युत चुम्बकीय तरंगें बहुत ही सूक्ष्म है जो सामान्यतः दृश्य नहीं है। त्रिपार्श्व के माध्यम से उनके सात वर्ण देखे गये हैं- बैंगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। स्पेक्ट्रम से दिखाई देते सातों रंगों की अपनी तरंग दीर्घता है। रंग प्रकाश से भिन्न नहीं हैं। प्रकाश तरंग रूप में होता है और प्रकाश का रंग उसके तरंग दैर्ध्य पर आधारित है। क्रिया और कर्म - सिद्धांत 133
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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