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________________ भी शुक्लधर्म कर सकता है और उच्चकुल में उत्पन्न व्यक्ति भी कृष्ण कर्म में संलग्न रह सकता है, इस तथ्य को उजागर करना था। धर्म और निर्वाण का जाति से अनुबंध नहीं है। यहां ज्ञातव्य यह है कि अभिजाति की अवधारणा और लेश्या में कुछ अन्तर है। का व्यक्ति से अनुबंध है । बुद्ध जन्मना अभिजाति में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंनें कर्मणा अभिजात को महत्त्व दिया। कर्म (क्रिया) ही व्यक्तित्व की सही व्याख्या है। यद्यपि अभिजातियों के वर्गीकरण का आधार वर्ण रहा और लेश्या के वर्गीकरण का आधार भी वर्ण रहा। इस दृष्टि से समानता होते हुए भी अभिजातियों की अपेक्षा लेश्या का सिद्धांत महाभारत की विचारधारा के अधिक निकट है। महाभारत का उद्धरण है कि - सनत्कुमार दानवेन्द्र वृत्रासुर से कहा - प्राणियों के छह वर्ण हैं - 1 कृष्ण 2 धूम्र 3 नील 4 रक्त 5 हर 6 शुक्ल । अधोगति कृष्ण वर्ण के होते हैं। नरक से निकलने वाले जीवों का वर्ण धूम्र होता है। मानव जाति का रंग नीला है। देवों का रंग रक्त है। विशिष्ट देवों का रंग हारिद्र (पीला) होता है। महान साधकों का वर्ण शुक्ल होता है। 22 पातञ्जल योग-दर्शन में कर्म की दृष्टि से चार जातियां प्रतिपादित हैं- 1 कृष्ण 2 शुक्ल - कृष्ण 3 शुक्ल 4 अशुक्ल - अकृष्ण । ये क्रमश: अशुद्धतर, अशुद्ध, शुद्ध, शुद्ध हैं। तीन जातियां सभी में होती हैं। चौथी अशुक्ल - अकृष्ण योगी में पाई जाती है।23 उपर्युक्त सभी समानताओं के रहते हुए भी लेश्या सिद्धांत की ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। प्राचीन प्रामाणिक स्रोतों के आधार पर यह कहना औचित्य पूर्ण होगा कि यह जैन दर्शन का अपना मौलिक संप्रत्यय है। श्या के प्रकार लेश्या के दो प्रकार हैं- द्रव्य लेश्या और भावलेश्या । द्रव्य लेश्या शरीर का रंग और आणविक आभा है। यह पौद्गलिक होती है। भाव लेश्या आत्मिक परिणाम है। इन दोनों में कार्य-कारण संबंध है। ( 1 ) द्रव्य लेश्या - यह सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से निर्मित संरचना है हमारे मनोभावों एवं तज्जति कर्मों का सापेक्ष रूप में कारण अथवा कार्य यही बनती है। जैसे- पित्त की अधिकता से स्वभाव क्रोधी बन जाता है और फिर क्रोध के कारण पित्त की वृद्धि होती है। उसी प्रकार सूक्ष्म भौतिक संरचनाएं हमारे मनोभावों का निर्माण करती हैं और फिर उन मनोभावों से सूक्ष्म भौतिक संरचना में में अभिवृद्धि होती है। क्रिया और कर्म - सिद्धांत 129
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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