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________________ 1. 'ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः' 6 महिने तक एक माला। लाभ-वचनसिद्धि की उपलब्धि होती है। बहुत चमत्कारिक मंत्र है। 2. ॐ हीं श्रीं क्लीं ब्लु अहँ नमः' त्रिसमय एक-एक माला। लाभ- सर्व कामना पूर्ण होती है। यह सर्वकार्यसिद्धि मंत्र है। 3. ॐ ह्रीं नमः' लाभ- व्यक्तित्व निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह अनुभव सिद्ध मंत्र है। जैन धर्म में मंत्रों के साथ-साथ यंत्रों का भी विकास हुआ है। यंत्र ज्यामितीय आकृतियों के आधार पर निर्मित किये जाते हैं। यंत्र में विविध मंत्र एवं संख्याएं एक निश्चित क्रम में लिखी हुई होती है मंत्र ध्वनि रूप होते हैं उनका जप किया है यंत्र आकृति रूप होते हैं उनका धारण या पूजन होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन परम्परा में यन्त्रोपासना का विकास हुआ है और वह आजतक जीवित भी है। किन्तु लगभग नवीं-दसवीं शताब्दी तक के जैन साहित्य में कहीं भी यंत्रों के निर्माण और उनकी उपासना के उल्लेख नहीं मिलते। बाद में 10वीं-11वीं शताब्दी से जैन ग्रंथों में यंत्र रचना और यंत्रोपासना के विधि-विधान परिलक्षित होने लगते हैं। इससे यह भी फलित होता है कि यंत्रोपासना की पद्धति जैनों की अपनी मौलिक नहीं रही। उन्होंने उसे अन्य परम्पराओं के प्रभाव से ही अपने में विकसित किया। सम्भावना यही है कि हिन्दू और बौद्ध परम्पराओं के प्रभाव से जैनों में यंत्र रचना और यंत्रोपासना की पद्धति विकसित हुई हो, किन्तु यंत्रों की आकृतिगत समरूपता को छोड़कर जैन यन्त्रों की हिन्दू और बौद्ध यंत्रों से और कोई समरूपता नहीं है। ___यंत्रों में लिखे जाने वाले नामों, पदों, बीजाक्षरों अथवा संख्याओं की योजना उन्होंने अपने ढंग से ही की है। अतः हम यह कह सकते हैं कि यन्त्रों के प्रारूप जो जैनों ने अन्य परम्पराओं से गृहीत किये किन्तु उनकी विषय वस्तु और यन्त्र रचना विधि जैनों की अपनी मौलिक है।237ब लघुविद्यानुवाद में संगृहीत यन्त्र __ आचार्यश्री कुन्थुसागरजी के लघुविद्यानुवाद नामक ग्रन्थ में अनेक यन्त्रों का विपुल मात्रा में संग्रह किया गया है। इस ग्रन्थ में विभिन्न यक्ष-यक्षियों एवं देवियों से सम्बन्धित मन्त्रों से गर्भित यन्त्रों के साथ-साथ मातृकापदों और संख्याओं के आधार अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया 104
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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