SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस प्रकार परमागम में गर्भ से लेकर निर्वाण पर्यन्त उपर्युक्त 53 क्रियाओं का उल्लेख भी मिलता है। (2) दीक्षान्वय क्रियाएं 1 अवतार 2 वृत्तलाभ 3 स्थानलाभ 4 गणग्रह 5 पूजाराध्य 6 पुण्ययज्ञ 7 दृढचर्या और 8 उपयोगिता । इन आठ क्रियाओं के साथ उपनीति नामक चौदहवीं क्रिया से तिरपनवीं निर्वाण (अग्रनिर्वृत्ति) क्रिया तक की चालीस क्रियाएं दीक्षान्वय क्रियाएं कहलाती हैं। (3) कर्त्रन्वय क्रियाएं ये वे क्रियाएं हैं जो पुण्य करनेवाले लोगों को प्राप्त हो सकती है और जो समीचीन मार्ग की आराधना करने के फलस्वरूप होती हैं। 1. सज्जाति 2. सद्गृहित्व 3. पारिव्राज्य 4. सुरेन्द्रता 5. साम्राज्य 6. परमार्हन्त्य 7. परमनिर्वाण । अन्य क्रियाएं उपर्युक्त क्रियाओं के अलावा तीन प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख करना भी प्रसंगिक होगा। वे हैं - (1) मांत्रिक क्रिया (2) यांत्रिक क्रिया (3) तांत्रिक क्रिया । (1) मांत्रिक क्रिया - अक्षरों की प्रभावक रचना विशेष का नाम मंत्र है। मंत्रों का स्पष्ट एवं लयबद्ध उच्चारण करने से साधक के चारों ओर कुछ विशिष्ट प्रकार की ध्वनि तरंगें उत्पन्न होने लगती हैं। किसी भी तरंग का उत्पन्न होना यह प्रमाणित करता है। कि आकाशीय प्रकम्पनों में कुछ तीव्रता आई है। जिस वर्ण समूह का मनन करने से दुःख मुक्ति होती है, वही मंत्र है। आध्यात्मिक दृष्टि से मंत्र का अर्थ है- मानव मन में उत्पन्न प्रेम का उद्रेक | साधना में मंत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है। लय बद्ध साधना से मंत्र प्रभावी बनता है। इसका मनोग्रंथियों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। चेतन मन के स्तर खुलने लगते हैं। ध्वनि तरंगें मन के संतुलन, रोग निवारण तथा शक्ति के आकर्षण में बहुत अच्छा कार्य करती है। इसके विपरीत विक्षिप्त हो जाना, साधना के विमुख होना, नये रोगों का उद्भव - ये 'सब मंत्रोच्चारण की अशुद्धता और अस्पष्टता के परिणाम हैं। दूसरा, मंत्र के साथ आस्था और श्रद्धा का भी होना आवश्यक है। जब व्यक्ति विलक्षण सामर्थ्य प्राप्ति के लिये किसी मंत्र का आस्था के साथ अनुष्ठान करता है तब उसके शरीर, इन्द्रियों और चित्त में अभिनव शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। पातञ्जल योग दर्शन में आठ सिद्धियों का निरूपण है। 23 क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 101
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy