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________________ (2) द्वेष प्रत्ययिकी क्रिया-क्रोध और मान द्वेष के लक्षण हैं।203 इनके निमित्त से होने वाली क्रिया द्वेष प्रत्ययिकी है। क्रोध प्रत्ययिकी- क्रोध के निमित्त से होने वाली क्रिया। मान प्रत्ययिकी- जीव-अजीव वस्तु के प्रति राग-द्वेष-अहंभाव लाना द्वेष है। टीकाकारों ने सुगमता के कारण उनका अधिक विवेचन नहीं किया। अन्य सब राग प्रत्ययिकी क्रिया की तरह ज्ञातव्य हैं। (3) प्रायोगिकी क्रिया-वीर्यान्तराय क्षयोपशम से आविर्भूत वीर्य के द्वारा होने वाले मन-वचन-काय रूप व्यापार से उत्पन्न क्रिया प्रायोगिकी है।204 प्रयोग क्रिया के तीन प्रकार हैं- मनप्रयोग क्रिया, वचन-प्रयोग क्रिया, कायप्रयोग क्रिया। मन प्रायोगिकी- ईर्ष्या, घृणा, अभिमान आदि मानासेक चंचलता से अर्थात् असत् विचार करने से जो क्रिया होती है, वह मन-प्रायोगिकी है। वचन प्रायोगिकी- कटुवचन (हिंसात्मक वचन) का प्रयोग करने से होने वाली क्रिया। काय प्रायोगिकी- गमनागमन की प्रवृत्ति से होने वाली क्रिया। (4) सामुदानिकी क्रिया- अनेक लोग एक साथ, एक ही प्रकार की क्रिया करते हैं, उसे सामुदानिकी क्रिया कहा जाता है। उदाहरणार्थ- नाटक, सिनेमा आदि का अवलोकन, कम्पनी खोलना, मेले आदि में हजारों व्यक्तियों का एकत्रित होना या अन्य आरम्भ जन्य कार्य करना। सामुदानिकी क्रिया से उपार्जित कर्मों का उदय भी प्राय: एक साथ होता है। भूकंप, भूस्खलन, जल-प्लावन, अग्नि-दाह, मोटर, ट्रेन, प्लेन का एक्सीडेंट, प्लेग या महामारी आदि के निमित्त से अनेक व्यक्तियों का एक साथ मरण हो जाता है, यह सामुदानिकी क्रिया का फल है। 205 प्रयोग क्रिया द्वारा एक रूप में ग्रहण तथा कर्मों को प्रकृति-बंध रूपों में देशघाति और सर्वघाति रूप में ग्रहण करना समुदान क्रिया है। उसके तीन प्रकार हैं- (1) अनंतर समुदान क्रिया (2) परम्पर समुदान क्रिया (3) तदुभय समुदान क्रिया। अनन्तर अर्थात् प्रथम समय की समुदान क्रिया अनन्तर समुदान क्रिया है। प्रथम समय को छोड़कर द्वितीयादि समय की समुदान क्रिया परम्पर समुदान क्रिया है। प्रथम अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया 94
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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