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________________ दृष्टिजा के दो प्रकार है- जीव दृष्टिजा, अजीव दृष्टिजा । जीव दृष्टिजा - प्राणियों को देखने के लिये जाने से लगने वाली क्रिया । अजीव दृष्टिजा- अजीव (चित्र आदि) के देखने से लगने वाली क्रिया । सिद्धसेन गणी के अनुसार राजा के राजमहल से बाहर निकलते या प्रवेश करते समय निकट स्थल पर नट, नर्तक, मल्ल, मेष, वृष आदि के युद्ध आदि को देखने की तीव्र इच्छा अथवा उसके लिये चेष्टा करना जीव सम्बन्धी दृष्टिजा क्रिया है।' 178 इसी प्रकार स्पृष्टिका के भी दो प्रकार हैं- जीव स्पृष्टिका, अजीव स्पृष्टिका। जीव पृष्ट 'तत्र जीव- स्पर्शन क्रिया योषित्पुरुषनपुसंकांऽगंस्पर्शनलक्षणराग-द्वेष-मोह भाजः । ' अर्थात् राग- - द्वेष अथवा मोहवश स्त्री-पुरुष और नपुसंक के अंगों का स्पर्श करना अथवा उनसे प्रश्न पूछना। ' 179 अजीव स्पृष्टिक राग-द्वेष वश पशुओं के रोम से निर्मित ( बने हुए) कम्बल, अन्य वस्त्र, पट्ट, शाटक, नीली और तकिया आदि के स्पर्श से होने वाली क्रिया । 179अ (3) scenfurcht faher (Inventing and manufacturing lethal weapons) : तत्त्वार्थवार्तिक में प्रातीत्यिकी क्रिया का उल्लेख नहीं बल्कि नामान्तर से प्रात्यायिकी क्रिया का निर्देश है। लगता है पडुच्च का ही संस्कृतीकरण प्रत्यय किया गया है । प्रात्यायिकी क्रिया का अर्थ नये नये कलहों को उत्पन्न करना । जीव - अजीव निमित्त से उत्पन्न राग द्वेषमय परिणाम से लगने वाली क्रिया प्रातीत्यिकी है। नयेनये पापादानकारी अधिकरणों के उत्पन्न करने से उनके द्वारा प्रातीत्यिकी या प्रात्यायिकी क्रिया होती है। 180 - (4) सामन्तोपनिपातिकी क्रिया (Evacuating Bowels or Vomiting at Gathering of Men and Women) चारों तरफ से एकत्र जन-समूह में होने वाली क्रिया सामन्तोपनिपातिकी क्रिया है। 81 राजवार्तिक, 182 श्लोक वार्तिक, 183 तत्त्वार्थ सूत्र, ' 184 सर्वार्थसिद्धि 185 आदि के क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 89
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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