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________________ 2. विशुद्ध बोधि का अनुभव - निर्मल ज्ञानोदय । 3. सम्पूर्ण अनगारिता - गृहस्थावास से निवृत्ति । 4. सम्पूर्ण ब्रह्मचर्यावास . - कामवासना से मुक्त जीवन । 5. सम्पूर्ण संयम ___- अध्यात्म के प्रति सर्वात्मना समर्पण । 6. सम्पूर्ण संवर - पापमय प्रवृतियों का निरोध। 7. सम्पूर्ण अभिनिबोधिक ज्ञान - इन्द्रियजन्य निर्णायक ज्ञान । 8. विशुद्ध अवधिज्ञान - मर्यादापूर्वक मूर्त द्रव्यों को जानने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान। 9. मनःपर्याय ज्ञान ___- मन को जानने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान । 10. विशुद्ध केवलज्ञान - पूर्ण निरावरण ज्ञान, सर्वलोक व सर्वजीवों के समस्त भावों को जानना। इन उपलब्धियों में प्रत्येक चरण अगले चरण के विकास के लिये अनिवार्य है। पूर्व भूमिका एवं उत्तर भूमिका में कारण-कार्य सम्बन्ध है।1129 प्रथम चार उपलब्धियों का स्वरूप व्यवहार और निश्चय दोनों भूमिकाओं पर संभव है। सामान्यतः परम्परागत साधना में उनकी व्यावहारिक भूमिका पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है और नैश्चयिक भूमिका गौण हो जाती है। पांचवें चरण से आगे की उपलब्धियां केवल आत्मा से सम्बन्ध रखती हैं। उन्हें व्यवहार की भूमिका पर घटित नहीं किया जा सकता। भगवान महावीर की दृष्टि में सारी समस्याओं का मूल हिंसा और परिग्रह । उनका दृढ़ अभिमत था कि जो व्यक्ति हिंसा और परिग्रह की वास्तविकता को नहीं जानता, वह न धर्म का अधिकारी होता है, न बोधि को प्राप्त कर सकता है और न सत्य का साक्षात्कार ही कर सकता है। कर्म-बंध के मूल हेतु आरंभ और परिग्रह हैं। राग-द्वेष, मोह भी बंधन के मूल कारण और आरंभ परिग्रह के प्रेरक तत्त्व हैं। दोनों में मुख्यता परिग्रह की है। आरंभ, परिग्रह के लिये होता है। जहां परिग्रह है वहां हिंसा निश्चित है। दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हैं। ___परिग्रह विरति का महत्वपूर्ण उपाय है- परिग्रह की परिज्ञा, विवेक करना, परिग्रह को ज्ञ-परिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान- परिज्ञा से छोड़ना। अपरिग्रह मोक्ष का उत्तम उपाय है। इससे वीतरागता की प्राप्ति होती है। 70 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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