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________________ (1) जीव आरम्भिकी- पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और गतिशील जीवों की हिंसा का जब तक प्रत्याख्यान नहीं किया जाता तब तक जितना भी आरंभ होता है, वह जीव आरम्भिकी क्रिया है। (2) अजीव आरम्भिकी- वृत्तिकार ने इसका आशय स्पष्ट किया है कि जीव के मृत शरीरों, पिष्ट, कपड़ा, कागज, चीनी आदि से निर्मित जीवाकृतियों में हिंसक प्रवृत्ति अजीव आरम्भिकी क्रिया है।103 चूर्णिकार104 ने छेदन, भेदन, पाचन आदि क्रियाओं तथा वृत्तिकार ने यंत्र-पीलन, निलांछन आदि 15 प्रकार का कर्मादान, जिनमें कोयलों का निर्माण,दन्त, केश, लाख आदि का व्यापार, सरोवर, तालाब आदि को खाली करना, जंगलों को जलाना आदि क्रियाओं को महाआरम्भ के अन्तर्गत माना है।105 . (3) पारिग्रहिकी क्रिया (Possessive Clinging)- स्थानांग वृत्तिकार के अनुसार यह क्रिया जीव और अजीव के परिग्रह से उत्पन्न होती है।106तत्त्वार्थवार्तिक में उसकी व्याख्या भिन्न प्रकार से उपलब्ध है। उसके अनुसार परिग्रह की सुरक्षा के लिए होने वाली प्रवृत्ति पारिग्रहिकी क्रिया है। 107 परिग्रह अर्थात् ममत्व भाव या आसक्ति, इससे लगने वाली क्रिया पारिग्रहिकी है। आवश्यक साधनों के सीमाकरण के अभाव में विश्व में विद्यमान सम्पूर्ण परिग्रह की क्रिया से व्यक्ति स्पृष्ट होता है। परकीय वस्तु पर आसक्ति भी परिग्रहजन्य क्रिया है। कहा भी गया-"पारिग्गहिय"- परिग्रहो धर्मोपकरणं वर्ण्य वस्तुस्वीकारः धर्मोपकरणमूर्छा च स प्रयोजनं यस्याः सा पारिग्रहिकी।''108 परिग्रह से तात्पर्य धर्मोपकरण को छोड़कर अन्य वस्तुओं का ग्रहण और धर्मोपकरण में आसक्ति है, तज्जनिक क्रिया पारिग्राहिकी क्रिया है। अन्यत्र भी कहा है- 'मैं और मेरा' इस भाव से की जाने वाली विषयासक्ति पारिग्रहिकी क्रिया है। पारिग्रहिकी क्रिया के प्रकार- पारिग्रहिकी क्रिया के दो प्रकार हैं- (1) जीव पारिग्रहिकी (2) अजीव पारिग्रहिकी। जीव पारिग्रहिकी- कुटुम्ब, परिवार, दास-दासी, गाय-भैंस, पशु-पक्षी, धनधान्य आदि स्थावर जीवों पर ममत्वभाव जीव पारिग्रहिकी क्रिया है। अजीव पारिग्रहिकी- सोना-चांदी, मकान, वस्त्र-आभूषण, शयन-आसन आदि निर्जीव वस्तुओं पर ममत्वभाव अजीव पारिग्रहिकी क्रिया है। इस संदर्भ में गौतम स्वामी का प्रश्न है- नैरयिक जीव आरंभ और परिग्रह से युक्त होते हैं अथवा मुक्त ? 68 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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