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________________ औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, स्यात् 3 | स्यात् 4 | स्यात् 5 कार्मण का निर्माण श्रोत्रेन्द्रिय,चक्षुरिन्द्रिय,घ्राणेन्द्रिय,रसनेन्द्रिय, स्यात् 3 | स्यात् 4 | स्यात् 5 स्पर्शनेन्द्रिय का निर्माण मनोयोग, वचनयोग, काय योग का निर्माण | स्यात् 3 | स्यात् 4 | स्यात् 5 | उपर्युक्त 13 आलापक एक वचन, बहुवचन की अपेक्षा 26 आलापक हो जाते हैं। पृथ्वीकाय के जीवों को श्वास-नि:श्वास ग्रहण करने में स्यात् तीन-चार-पांच क्रियाएं स्पृष्ट होती हैं। पृथ्वीकाय की तरह ही अन्य स्थावर के आलापक ज्ञातव्य हैं। कायिकी क्रियापंचक का परस्पर सहभाव कायिकी क्रिया की विद्यमानता में आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया अवश्य होती है। प्रारंभ की तीन क्रियाओं का परस्पर सहभाव नियम से है। आगे की दो क्रियाएं वैकल्पिक हैं अर्थात् वे कभी होती हैं और कभी नहीं भी होती हैं। इसका कारण शरीर अधिकरण है भी और नहीं भी। इसलिये अधिकरणिकी क्रिया होती है और विशिष्ट कायिकी क्रिया प्रद्वेष के बिना नहीं होती। मुख की वक्रता, रूक्षता आदि प्रद्वेष के लक्षण प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होते हैं। अत: तीनों का अविनाभावी सम्बन्ध है। किसी को परिताप देने या प्राण व्यपरोपण करने में 4-5 क्रियाएं भी एक साथ हो सकती हैं। कहा भी है तिसृभिश्चतसृभिरथ पञ्चभिश्च हिंसा समाप्यते क्रमशः। बन्धोऽस्य विशिष्टः स्यात् योगप्रद्वेषसाम्यं चेत्॥4(ख) क्रियाओं के सहभाव को तीन रूपों में देखा जा सकता है- (1) प्रथम में कायिकी आदि तीन क्रियाएं । (2) द्वितीय में पारितापनिकी के साथ चार क्रियाएं। (3) प्राणातिपात होने पर पांच क्रियाएं । आरम्भिकी क्रिया-पंचक ____ आगम साहित्य में क्रिया के अनेक प्रकारों का उल्लेख है। कर्म-बंधन की हेतुभूत सभी प्रवृत्तियां क्रिया हैं। इस व्याख्या में क्रिया के सभी प्रकारों का समाहार हो जाता है। विवक्षा के आधार पर संक्षिप्त या विस्तार रूप से विवेचन किया जा सकता है। इस संदर्भ में क्रियाओं के अनेक पंचक बनाये गये हैं। प्राणातिपातादि क्रिया-पंचक के बाद आरम्भिकी आदि क्रिया पंचक की प्रस्तुति इष्ट है। अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया मिथ्या दर्शन प्रत्यया क्रिया अप्रत्या अप्रत्या- किया रिग्रहिकी आरम्भिकी क्रिया ख्यान । क्रिया किय क्रिया प्रत्यया 66
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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