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________________ दृष्टियां हैं। व्यवहार दृष्टि वस्तु के बाहरी स्वरूप तक सीमित रहती है। निश्चय दृष्टि की पहुंच आन्तरिक स्वरूप तक है। व्यवहार दृष्टि में लोक व्यवहार की प्रमुखता है जबकि निश्चय दृष्टि में वस्तु-स्थिति का आकलन किया जाता है। व्यवहार दृष्टि में जहां प्राणवध है, वहां हिंसा है। जहां प्राण-वध नहीं है, वहां अहिंसा है। निश्चय दृष्टि से असत् प्रवृत्ति अर्थात् राग-द्वेषात्मक प्रवृत्ति हिंसा है। सत्प्रवृत्ति अहिंसा है। इन दृष्टियों के आधार पर हिंसा-अहिंसा की चतुर्भंगी बनती है (अ) द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा (ब) द्रव्य हिंसा और भाव अहिंसा (स) द्रव्य अहिंसा और भाव हिंसा (द) द्रव्य अहिंसा और भाव अहिंसा राग-द्वेष वश होने वाला प्राणवध द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा है। एक शिकारी हिरण को मारता है- यह द्रव्य और भाव दोनों दृष्टियों से हिंसा रूप पहला विकल्प है। राग-द्वेष के बिना होनेवाला प्राणवध द्रव्य हिंसा किन्तु भाव अहिंसा है। एक संयमी पुरूष सावधानी पूर्वक चलता है, तथा आवश्यक दैहिक क्रियाएं भी करता हैं। उसके द्वारा अशक्य परिहार कोटि का प्राणवध हो जाता है, वह व्यवहार में हिंसा है क्योंकि वह प्राणी की मृत्यु का निमित्त बनता है और वास्तव में अहिंसा है क्योंकि उसकी प्रवृत्ति राग-द्वेषात्मक नहीं है। राग-द्वेष युक्त विचार से प्राणी पर प्रहार करता है, प्राणवध नहीं होता, वह द्रव्य अहिंसा है किन्तु भाव हिंसा है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति ने सांप देखा। मारने का संकल्प किया किन्तु मारा नहीं। उसने डंडा उठाया, सांप भाग गया, मारने में असमर्थ रहा, यह भी तीसरा विकल्प है। सांप को देखा पर मन में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। शुद्ध चिन्तन है कि निरपराध की हत्या क्यों करूं ? यह चौथा विकल्प है। इस प्रकार द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा के ये चार समीकरण बनते हैं। ये समीकरण विचित्र प्रतीत होते हैं। इन सबके पीछे मूल तथ्य यही है कि अविरत प्राणियों में भाव हिंसा अनिवार्य रूप से पाई जाती है। यह आवश्यक नहीं कि जहां भाव हिंसा हो वहां द्रव्य हिंसा हो ही। फलितार्थ यह है कि हिंसा में वाणी और शरीर का जितना योग होता है उतना मन का भी होता है। हिंसा की तरह अहिंसा की भी अनेक कसौटियां हैं। सूत्रकृतांग में बौद्धों की अहिंसक मान्यताओं का उल्लेख है। अहिंसा के संदर्भ में तीन प्रश्न मुख्य हैं (अ) क्या जीव-वध होने से हिंसा होती है ? अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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