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________________ (ब) कोई सात और कोई आठ का बंध करते हैं। (स) अनेक सात और अनेक आठ कर्म का बंध करते हैं। प्राणातिपात क्रिया के प्रकार प्राणातिपात क्रिया के दो प्रकार हैं-1. स्वहस्त प्राणातिपात क्रिया 2.परहस्त प्राणातिपात क्रिया। स्वहस्त प्राणातिपात क्रिया "स्वहस्तेन स्वप्राणान् निर्वेदादिना परप्राणान् वा क्रोधादिना अतिपातयतः स्वहस्त प्राणातिपात क्रिया।"89 निराशा अथवा क्रोधावेश में गिरिपतन, अग्नि-प्रवेश-जल प्रवेश या शस्त्रों से अथवा अपने हाथों से स्वयं का या दूसरों के प्राणों का हनन करना स्वहस्त प्राणातिपातिकी क्रिया है। परहस्त प्राणातिपात क्रिया दूसरे के द्वारा अपने या पराये प्राणों का अतिपात करना परहस्त प्राणातिपात क्रिया है। कायिकी आदि क्रिया पंचक को 'आयोजिका क्रिया' भी कहा जाता है। 'आयोजयंति जीव संसारे इत्यायोजिका' जीव को संसार से जोड़ने वाली क्रिया आयोजिका है। जैन मान्यतानुसार संकल्पकृत और असंकल्पकृत हिंसा से होनेवाले कर्म-बंध में तारतम्य हो सकता है किन्तु किसी से बंधन हो और किसी से नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। संकल्प व्यक्त मन का परिणाम है। प्रमाद अव्यक्त चेतना का और अध्यवसाय सूक्ष्म मन का कार्य है। विरति के अभाव में स्थूल मन का संकल्प न होने पर भी जीव-वधजनित हिंसा होगी। बौद्धों ने बंध-अबंध का आधार संकल्प-असंकल्प को माना है। जैन दर्शन में प्रमाद-अप्रमाद, राग-द्वेषात्मक आत्मा की अशुद्ध परिणति मात्र हिंसा है।90(क) हिंसा से विरत न होना ही हिंसा है। प्रवृत्ति रूप हिंसा वर्तमान में होती है। किन्तु अविरति रूप हिंसा निरन्तर होती है। आचार्य भिक्षु ने इन्द्रियवादी की चौपाई में कहा हिंसा री अविरत निरन्तर हुवै, हिंसा रो जोग निरंतर नाही। हिंसा रा जोग तो हिंसा करे जदि, विचार देखो भन मांही॥१(ख) प्रश्न-जो प्रवृत्ति से रहित है, जिनका ज्ञान अव्यक्त है, ऐसे जीवों के लिये हिंसा कैसे संभव है ? इस संदर्भ में समाधान देते हुए कहा गया- अवसर, साधन और शक्ति 60 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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