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________________ (ब) निर्वर्तनाधिकरणिकी- किसी मारक यंत्र, शस्त्र आदि का नया निर्माण करना।67 शस्त्र-निर्माण का हेतु अविरति और दुष्प्रवृत्ति दोनों है। यदि कायिकी क्रिया न हो तो आधिकरणिकी क्रिया संभव नहीं होती । शस्त्र - निर्माण की पृष्ठभूमि में कार्य करती है- अविरति और निर्माण की प्रक्रिया है- दुष्प्रवृत्ति । तलवार, शक्ति, भाला, तोमर आदि शस्त्रों का निर्माण अथवा पांच प्रकार के औदारिकादि शरीर को उत्पन्न करना भी निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया है क्योंकि अशुभ प्रवृत्तिमय शरीर भी संसार वृद्धि का हेतु है। 8 तात्पर्य यह है कि निर्मित अधिकरणों से संयोजनाधिकरणिकी और निर्मियाण (भविष्य में बनने वाले) अधिकरणों से निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया होती है। शस्त्र का अर्थ केवल आयुध ही नहीं अपितु हिंसा का भाव भी शस्त्र है। अविरति या असंयम हिंसा है। यह वर्तमान में हिंसारूप प्रतीत नहीं होती है। किन्तु हिंसा इनके अभाव में संभव नहीं हैं। हिंसा का मूल कारण क्रूरता, अविरति आदि भाव ही हैं। हिंसा के उपकरणों का नाम द्रव्य शस्त्र है और हिंसात्मक मनोभाव का नाम भाव शस्त्र है। भाव शस्त्रस्थूल स्तर पर मृत्यु का कारण नहीं हैं किन्तु यह इस प्रकार के कर्म बंध का कारण है जिसका परिणाम मृत्यु हो सकती है। (1) स्वकाय शस्त्र - जैसे- पृथ्वी द्वारा पृथ्वी के जीवों का प्रतिघात । (2) परकाय शस्त्र - जैसे - पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं से पृथ्वी का प्रतिघात । (3) उभय शस्त्र - जैसे- पृथ्वी और अन्य वस्तु दोनों द्वारा पृथ्वी का अपघात। शस्त्र विवेक के बिना अहिंसा की गहराई को मापा नहीं जा सकता। इस विषय में प्रश्न हो सकता है कि अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण में अरबों का व्यय हो रहा है। इस आधिकरणिकी क्रिया का संभागी कौन ? निर्माण कर्ता या निर्देश कर्ता ? जैनागम के अनुसार हिंसा के तीन स्रोत हैं- कृत, कारित और अनुमोदित। जब तक इन तीनों में से किसी एक से भी व्यक्ति जुड़ा हुआ है तब तक उसकी संभागिता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। अतः हिंसक शस्त्रों के निर्माण का निर्देश देने वाला हिंसा का भागी है तो निर्माण कर्ता भी। इतना ही नहीं, वह व्यक्ति जो हिंसा स्वयं नहीं करता और न हिंसक साधनों का निर्माण ही करता है किन्तु हिंसात्मक गतिविधियों को समर्थन देता है वह भी उतना ही हिंसक है जितने पूर्ववर्ती निर्देश कर्ता और निर्माण कर्ता। यह स्पष्ट ही है कि समर्थन या अनुमोदन से हिंसक घटनाओं और व्यक्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। 50 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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