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________________ मन कर्म-बंध में सक्रिय भूमिका निभाता है। कायिक हिंसा की तरह मानसिक हिंसा भी अनर्थ का हेतु है, उससे भी प्राणी नरकादि अधोगति को प्राश करता है। तंदुल मत्स्य का उदाहरण मानसिक हिंसा का स्पष्ट प्रमाण है। तंदुल मत्स्य एक अत्यन्त सूक्ष्म प्राणी है जो विशालकाय मगरमच्छ के भौहों पर अवस्थित रहता है। मगरमच्छ के मुंह में आते - जाते जंतुओं को देखकर सोचता है- यह कितना बेपरवाह है। यदि इसके स्थान पर मैं होता तो सारे जंतुओं को खा जाता। इस प्रकार के क्रूरता पूर्वक चिन्तन से वह नरकगामी बन जाता है। राजा श्रेणिक ने काल सौकरिक कसाई (जो पांच सौ भैंसों का प्रतिदिन वध करता था) को अहिंसक बनाने का काफी प्रयत्न किया। खाली कुएं में डाल देने पर भी कालसौकरिक कायिक हिंसा तो नहीं कर सका किन्तु मानसिक हिंसा से बच भी नहीं सका। कुए में विद्यमान कीचड़ से वह भैंसें बनाता गया, मारता गया शाम तक एक-एक करके उसने पांच सौ भैंसें मारने के संकल्प को पूरा किया। कर्म शास्त्रीय दृष्टि से भी विचार करें तो मात्र काययोग से मोहनीय कर्म का बंध उत्कृष्टतः एक सागर की स्थिति का हो सकता है। घ्राणेन्द्रिय के साथ संपृक्त होने पर पचास सागर, चक्षु के मिलने पर सौ सागर, श्रौत्रेन्द्रिय का योग होने पर हजार सागर और यदि मन का योग हो गया तो उत्कृष्ट सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर का कर्मबंधन हो सकता है।37 मन की शक्ति असीम है। बौद्ध दर्शन में भी कायिक और मानसिक हिंसा को स्वर्ण एवं मृन्मय घट से उपमित किया है। मिट्टी का घट फूटने पर कीमत नहीं रहती जबकि स्वर्णघट फूटने पर भी कीमत यथावत् रहती है वैसे ही कायिक क्रिया हेतु मात्र है। मानसिक क्रिया से प्रचुर कर्म-बंध होता है। मानसिक हिंसा वृक्ष के मूल जैसी है। वाचिक और कायिक हिंसा पत्ते एवं फल जैसी है। (6) मृषा प्रत्ययिक- असत्यसम्भाषण या झूठ बोलना मृषाप्रत्यायिक क्रिया कहलाती हैं। इसके प्रेरक तत्व है- आवेश, आग्रह अथवा पारिवारिक स्वार्थ इत्यादि। इसके कारण व्यक्ति स्वयं झूठ बोलता है, दूसरों को झूठ बोलने के लिये प्रेरित करता है अथवा झूठ का समर्थन करता है। परिणाम स्वरूप पाप कर्म का बंध होता है और लोगों में अविश्वास पैदा होता है।38 (7) अदत्तादान प्रत्ययिक-अदत्त वस्तु के ग्रहण से जो क्रिया लगती है, वह अदत्तादान क्रिया है। चोरी सामाजिक अपराध है। चोरी स्वार्थ अथवा परिवार के सुख अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया 40
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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