SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु वर्तमान में कुछ ऐसी मशीने निर्मित हो गई हैं जिनके अन्दर सारे पुर्जे रहते हैं। खराबी आते ही औजार स्वतः बाहर निकलते हैं और उस पुर्जे को ठीक कर देते हैं। वैसे ही हमारी आत्मा की मशीन ठीक करने के पुर्जे हमारे ही भीतर में पड़े हैं। आत्मा के उन पुर्जों में 'सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु' -यह एक ऐसा शक्तिशाली और विलक्षण पुर्जा है जो सर्वत्तोभावेन आत्मा की स्वस्थता के लिए सतर्कता पैदा करता रहता 1 चंदेसु निम्मलयरा आदि तीनों पद हमारी शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक शक्तियों के विकास में निमित्त बनते हैं । साधक तीनों पद्यों का ध्यान करता हुआ चौथे चरण में सिद्ध भगवन्तों से सिद्ध सुगति प्राप्ति की अभिलाषा अभिव्यक्त करता है। ‘ठाणं' में चार प्रकार की सुगति का उल्लेख है' १. सिद्ध ग २. देवग ३. मनुष्य सुगति ४. सुकुल में जन्म उपरोक्त चारों सुगतियों में से तीन सुगतियों में जन्म-मरण की यात्रा रहती है परसिद्ध सुगति की प्राप्ति के पश्चात भव-भ्रमण के अंकुर का सर्वथा अभाव हो जाता है। अतएव सिद्ध सुगति की प्राप्ति हमारे जीवन का परम ध्येय है । 'सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु' मंत्र पद सब प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है । अतः दृढ़ श्रद्धा, व अनुकूल पराक्रम के साथ इस मंत्र पद का जप भी हमारी जीवन यात्रा को सही दिशा की ओर संवर्धित करता हुआ हमारे चरम और उत्कृष्ट, अनुपम लक्ष्य से हमें जोड़े हुए रखता है, और एक दिन सफलता के चरम शिखर पर भी पहुँचा देता है । परन्तु यह कोई एक जन्म की साधना का परिणाम नहीं है, जन्म जन्मान्तर की साधना का परिणाम है । ५८ / लोगस्स - एक साधना - २
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy