SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवेश करना चाहता हूँ। जब गुरु आज्ञा दे तब हमारा उसमें प्रवेश और गुरु के साथ संपर्क शुरू हो जाता है। इस प्रकार आज्ञा चक्र के महत्त्व और स्वरूप को समझना अत्यन्त कठिन है। अनुभव की परिपक्वता से साधना और सिद्धि के स्रोत जीवन के महत्त्वपूर्ण सोपान सिद्ध होते हैं। प्रयोग प्रविधियां आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने सिद्धों के पदस्थ और रूपस्थ ध्यान की अनेकों विधियों का उल्लेख अपनी अनेक कृतियों में किया है, जिनका मुख्यतः संबंध दर्शन-केन्द्र से ही है, जो निम्नलिखित है १. सिद्धा यह मंत्र अति प्राचीन है। यह महान और शक्तिशाली मंत्र है। दर्शन-केन्द्र पर इस मंत्र का लयबद्ध उच्चारण पांच से पन्द्रह मिनट तक किया जा सकता है। यह अन्तर्दृष्टि के जागरण का प्रयोग है। प्रातःकाल सूर्योदय के समय सिद्धा मंत्र का जप मंगलकारी माना गया है। सूर्योदय के समय एक श्वास में २१ अथवा ३१ बार 'सिद्धा' मंत्र का उच्चारण मंगल वातावरण व इष्ट सिद्धि देने वाला होता है।' २. ॐ णमो सिद्धम् यह भी प्राचीन और प्रभावक मंत्र है। इसका प्रयोग भी उपरोक्त विधि से किया जाता है। प्राचीनकाल में पढ़ने वाला शिष्य जब अपना अध्ययन प्रारंभ करता तो 'णमो सिद्धम्' मंत्र लिखता था। केवल जैन ही नहीं, पुराने जितने भी लोग हैं गुरुजी पढ़ाते समय उन्हें यह मंत्र लिखते थे। गुजरात, महाराष्ट्र और पूरे दक्षिण में यह मंत्र सर्वत्र व्यापक था। “ॐ नमः सिद्धम्' मंत्र का विधिवत शरीरस्थ अंगों पर न्यास करने से शरीर सुरक्षा कवच का निर्माण होता है। इसकी विधि निम्न प्रकार से उपलब्ध है - मंत्र ॐ नमः सिद्धम् मंत्र संख्या इस मंत्र का एक बार पाठ करें। जिस अवयव पर न्यास किया है उस अवयव पर मंत्र का साक्षात् करें। आइच्चेसु अहियं पयासयरा / ४६
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy