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________________ जब मनुष्य अधिक लालची होता है, अधिक आतुर होता है तो निम्न प्रकृति की वृत्तियाँ पैदा होती हैं। दर्शन-केन्द्र के एक स्राव एस.टी.एच. का जब स्राव होता है तब वह एड्रीनल ग्रंथि को उत्तेजित करता है जिसके कारण नाना प्रकार की विकृतियाँ एवं बीमारियां पैदा होती हैं, जैसे--- अधैर्य और विषाद के भावों का पनपना। आतुरता व ग्लानि के भाव बने रहना। आत्महत्या की भावना होना। रोग प्रतिरोधक क्षमता के क्षीण होने से संक्रामक रोगों की सम्भावना का बढ़ना। हाइपर एसीडिटी और अल्सर जैसी बीमारियों का जन्म। वास्तव में दर्शन-केन्द्र का स्थान बहुत बड़ी खिड़की है। वहाँ से बहुत कुछ देखा जा सकता है। योगाभ्यासी को दीर्घ अभ्यास के बाद इस चक्र की सिद्धि होती है। आज्ञा-चक्र, तृतीय नेत्र इसी केन्द्र के पर्याय हैं। यह अतीन्द्रिय क्षमताओं और चेतना का स्रोत है। यह एक ऐसा स्रोत है जिसका प्रवाह अविच्छिन्न रहता है। यह कुंड का पानी नहीं, कुएं का स्रोत है, जहाँ प्रतिदिन नया पानी आता है। यह केन्द्र दोनों भृकुटियों के मध्य स्थित है। विज्ञान ने इसी स्थान पर पिच्युटरी ग्रंथि का होना माना है। इसे आज्ञादायिनी और संदेशवाहिनी ग्रंथि माना गया है। शरीर में सभी सूचनाएं यहीं से संप्रेषित होती हैं। रशिया का एक अद्भुत शिशु त्रिनेत्रधारी शिव के मस्तक पर चन्द्रमा विराजमान है, जिन्हें चन्द्रमौली भी कहते हैं। त्रिनेत्र होने से नारियल को शिव का स्वरूप मानते हैं, उसे त्रिनेत्र कहते हैं। यह शुभ, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के पास एक भाई अखबार की कटिंग लेकर आया, जो गुजराती भाषा में था। उसमें रशिया के एक शिशु का चित्र छपा था। उस शिशु में दो आँखों के अतिरिक्त एक तीसरी आँख और दिखाई दे रही थी। माता-पिता ने सोचा भद्दा चिह्न है इसलिए ऑपरेशन करा लेना चाहिए। पर डॉक्टरों ने ऑपरेशन के लिए इन्कार कर दिया। जब वह लड़का बोलने लगा तो ऐसी-ऐसी बातें कहनी शुरू की कि सुनकर सबको आश्चर्य होता। एक दिन उसके माता-पिता कहीं यात्रा पर जा रहे थे, उस बच्चे ने जिद्द पकड़ ली कि यात्रा पर नहीं जाने दूंगा। उन्होंने कहा-अभी हमारा रिजर्वेशन है, बाद में फिर टिकट मिलेगी नहीं और जाना भी जरूरी है। उस बच्चे ने उन्हें किसी भी तरह से नहीं जाने दिया। अगले दिन समाचार पत्र में पढ़ा-वह ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो गई। उस आइच्चेसु अहियं पयासयरा / ४७
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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