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________________ है परम शुक्ल लेश्या। उसका रंग इतना सफेद है कि वह इस स्थूल दुनिया में दिखाई नहीं देता। मंत्र, रंग और चैतन्य केन्द्र इनकी सम्यक् युति में स्वास्थ्य एवं सफल जीवन का रहस्य छिपा है। प्रयोग धर्मा बनकर ही उस रहस्य को हस्तगत किया जा सकता है। साधना का अंतिम स्वरूप श्वेत रंग और साधना का अंतिम व्यक्तित्व हैअर्हत्। जो साधना के चरम बिंदु तक पहुँच गया, उसका नाम है अर्हत्। हम उस आत्मा को नमस्कार करते हैं जिसके लिए साधना का कोई आयाम शेष नहीं रहा। जो कृतार्थ बन गया है, धर्म जिनका स्वरूप बन गया है, वह है अर्हत्। ज्ञान-दर्शन-चारित्र ये आज हमारे लिए धर्म है किंतु जो व्यक्ति केवली बन जाता है उसके लिए यह सहज स्वभाव बन जाता है। उसमें अनंत-ज्ञान, अनंत-दर्शन और अनंत-चारित्र का स्रोत प्रस्फटित हो जाता है। इसलिए साधक 'चंदेस निम्मलयरा' पद का ज्योति केन्द्र पर ध्यान करता हुआ अर्हत् व सिद्ध भगवन्तों से सिद्धि की कामना करता है। श्वेत रंग अर्हतों की वीतरागता, परमशांति व केवल-ज्ञान का प्रतीक है। यह निर्विवाद सत्य है जहां निम्रलता, स्वच्छता, पवित्रता होगी उसी ओर सभी आकृष्ट होगें। यही कारण है कि तीर्थंकरों के आभामंडल में सब प्राणी निर्वैर भाव को प्राप्त हो जाते हैं। इस रंग की अपनी मौलिक विशेषताएं हैं। इस प्रकार 'चंदेसु निम्मलयरा' मंत्र पद को आवेश शमन का स्वर्ण सूत्र कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि तीर्थंकर क्रोध की भूमिका पार कर शुक्ल ध्यान की भूमिका पर आरूढ़ होते हैं अतः उनका ध्यान व्यक्ति को शुक्ल ध्यान की भूमिका पर आरोहण कराता है। आध्यात्मिक प्राप्ति के साथ-साथ सिरदर्द का यह बहुत बड़ा इलाज भी है। सरदारशहर की एक बहन ने आचार्यश्री तुलसी के दर्शन किये और कहा-गुरुदेव! सिर में भयंकर दर्द रहता है। इस कारण न माला फेर सकती हूँ और न ही सामायिक कर सकती हूँ। गुरुदेव ने उसे ललाट पर सफेद रंग के ध्यान का प्रयोग लम्बे समय तक करने का सुझाव दिया। उसने सघन आस्था के साथ प्रयोग किया और सफल हो गई। ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं। साधना और सिद्धि में सिद्ध योगी आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने लिखा है-"चंदेसु निम्मलयरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु'-ये मंत्र मृत्युंजय महामंत्र का काम करते हैं। जिन लोगों को भयंकर गुस्सा आता है, वे लंबे समय तक चंदेसु निम्मलयरा का सफेद रंग में ललाट पर ध्यान करें तो गुस्सा संतुलित हो जाता है, समस्या समाहित हो जाती है। ज्योति केन्द्र पर केवल चंद्रमा का ध्यान किया जाता है। चाँदनी शीतल १० / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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