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________________ तथा उस पवित्र आभामंडल में, पवित्र निर्देशन में कुछ प्रयोगों का अभ्यास भी किया है जो निम्न है• चंदेसु निम्मलयरा • आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवरगंभीरा • सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु चंदेसु निम्मलयरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु आइच्चेसु अहियं पयासयरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु सागरवर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु सिद्धा ॐ णमो सिद्धम् ॐ णमो सिद्धाणं णमो सिद्धाणं ॐ णमो सिद्धाणं (सुरक्षा कवच) ॐ ह्रीं ऐं ॐ जी जौं चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम मनोवांच्छितं पूरय पूरय स्वाहा।' (इस मंत्र का एक हजार जप करने से कर्म निर्जरा के साथ-साथ मनः शैथिल्य दूर होता है और प्रतिष्ठा बढ़ती है।) • ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अ सि आ उ सा नमः चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागर वर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ां ही हूं हों हौं हं हः नमः। (यह मंत्र पवित्र आभामंडल के निर्माण के साथ-साथ सब मनोरथों की सिद्धि व सर्वत्र यश प्रदान करता है।) • चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ (कष्ट के समय इस मंत्र का जप अधिकाधिक अनुप्रेक्षा पूर्वक करने से सहज ही कष्ट से मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन इसका जप करना चाहिए। यह मंत्र आत्म विशुद्धि के साथ-साथ संकट निवारण करता है।) • आध्यात्मिक विकास मंत्र । चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा सागरवर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु मम मनोवांछितं कुरु कुरु स्वाहा। (मानसिक संकल्प पुष्ट करते हुए २१ दिन एक माला फेरें। फिर प्रतिदिन २१ बार जप करें) ३६ / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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