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________________ लोगस्स प्रेय से श्रेय की ओर प्रस्थान करने का यात्रा पथ है। लोगस्स बाहर से भीतरी जगत् में प्रवेश करने का प्रमुख द्वार है। लोगस्स अयथार्थ से यथार्थ की ओर जाने का अनुपम सेतु है । लोगस्स अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का एक राजमार्ग है। लोगस्स विभाव से स्वभाव में रमण कराने का महासूत्र है 1 लोगस्स सुषुप्ति से जागरण की ओर ले जाने की विलक्षण साधना है। श्रेय की ओर प्रस्थान, भीतर की यात्रा, यथार्थ की अनुभूति प्रकाश की उपलब्धि, स्वभाव में स्थिति, जागरण का अहसास - इन आत्मगुणों के उपवृहण और सम्यक् दर्शन के संपोषण की समन्विति का ही प्रकृष्ट रूप है - परम समाधि या आत्म साक्षात्कार। आत्म साक्षात्कार के उन अपूर्व क्षणों में साधक अन्तश्चेतना की बैचेन अन्वेषणा में अपने आप को खो देता है। ये ही वे क्षण होते हैं जिन क्षणों में उसकी चेतना के केन्द्र में एक व्यापक विस्फोट होता है। वह आत्म साक्षात्कार के अनिर्वचनीय आनंद में निमग्न हो जाता है। अध्यात्म के क्षेत्र में आत्मस्वरूप की उपलब्धि ही सिद्धि मानी गई है। उस सिद्धि को प्राप्त करना प्रत्येक साधक का चरम लक्ष्य है। आत्म साधना ही आत्मा के अनंत और अक्षय वैभव - कोष को उन्मुक्त कर अव्याबाध सुख की प्राप्ति का तु बनती है । अर्हतों को वंदन करने का उद्देश्य भी यही है हमारे चित्त में गुणों की महिमा अंकित हो जाये । मानव मस्तिष्क की चेतना में विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार चार प्रकार की विभिन्न विद्युत तरंगों के नमूने परिलक्षित होते हैं जिनके वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं। जागृत अवस्था में एक विशेष प्रकार की तरंगें मस्तिष्क में उत्पन्न होती हैं । सुषुप्ति (गहन स्वप्न रहित निद्रा) में एक अन्य प्रकार की अत्यन्त मंद तरंगें उत्पन्न होती हैं। ध्यान के पूर्वार्ध तथा तन्द्रा ( हल्की नींद) में अन्य विशेष प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की विश्रामावस्था में एक विशेष प्रकार की शांति सूचक उत्कृष्ट तरंगें उत्पन्न होती है। ध्यान की अवस्था में उत्तरोत्तर शांतिदायक तरंगें बहुगुणित होती जाती हैं । ध्यानाभ्यासी के मस्तिष्क में ऐसी तरंगें लगभग निरंतर ही सर्वाधिक रहने लगती हैं, जिनके प्रभाव से मनुष्य धीर, गंभीर और शांतिप्रिय हो जाता है । सामान्य व्यक्ति के मस्तिष्क में ये उत्कृष्ट तरंगें बहुत घटती-बढ़ती रहती हैं किंतु ध्यान का अभ्यास करने पर ये लगभग सुस्थिर एवं स्थाई हो जाती हैं । 'चंदेसु निम्मलयरा' का प्रयोग ध्यान का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। इस प्रयोग में अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। इसके सतत् अभ्यास से विवेक बुद्धि व स्मरण ३२ / लोगस्स - एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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