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________________ ध्यान की कक्षा है । प्रेक्षा जब उत्कृष्ट भूमि पर चली जाती है तब शुक्ल ध्यान कहलाती है । प्रेक्षा की सिद्धि में पारायण व्यक्ति आधि, व्याधि व उपाधि का यत्नपूर्वक अतिक्रमण कर समाधि को प्राप्त होता है, यह आचार्य महाप्रज्ञ का मंतव्य है । योगशास्त्रानुसार ‘तदेवार्थमात्रनिर्यासं स्वरूप शून्यमिव समाधिः । ध्यान जब केवल अर्थ ध्येय (ईश्वर) के स्वरूप या स्वभाव को प्रकाशित करने वाला, अपने स्वरूप से शून्य * जैसा होता है, तब उसे समाधि कहते हैं । महर्षि दयानंद के अनुसार ध्यान करने वाला जिस मन से जिस वस्तु का ध्यान करता है, वे तीनों विद्यमान रहते हैं अर्थात् ध्यानकर्ता, मन और वस्तु तीनों की विद्यमानता रहती है । समाधि में केवल परमेश्वर के आनंदमय, शांतिमय, ज्योतिर्मय, स्वरूप व दिव्य ज्ञान आलोक में आत्मा निमग्न हो जाता है, वहां तीनों का भेद नहीं रहता अभेद प्रणिधान सध जाता है । ज्ञान समाधि और केवलज्ञान ज्ञान समाधि से तात्पर्य ज्ञान को केवलज्ञान ही रहने देना संवेदन नहीं बनाना ।" संवेदन मंद होने पर दर्शन समाधि, मंदतर होने पर समता समाधि और क्षीण होने पर वीतराग समाधि फलित होती है । केवलज्ञान तो ज्ञान समाधि का परिणाम है। 1 ज्ञान की पराकाष्ठा ही वैराग्य है । समाधि द्वारा ज्ञान के इस उच्चतम क्षितिज की प्राप्ति होने पर मोक्ष अवश्यम्भावी है जिसे प्राप्त कर योगी इस प्रकार अनुभव करता है कि प्राप्त करने योग्य सब कुछ पा लिया, क्षीण करने योग्य अविद्यादि क्लेश (अविद्या, अस्मिता), राग, द्वेष, अभिनिवेश नष्ट हो गये हैं । जिसके पर्व (खण्ड) मिले हुए हैं, ऐसा भव संक्रमण एक देह से दूसरे देह की प्राप्ति रूप संसार का आवागमन छिन्न-भिन्न हो गया है। जैसा कि कहा गया है ज्ञानस्येव पराकाष्ठा वैराग्यम् । एतस्यैव हि नान्तरीयकं कैवल्यमिति ॥ " चित्तसमाधि के सूत्र १. खान-पान में संयम २. आर्थिक तनावों से मुक्त रहने का अभ्यास * आनंद, ज्योतिर्मय व शांतिमय परमेश्वर का ध्यान करता हुआ साधक ओंकार ब्रह्मपरमेश्वर में इतना तल्लीन, तन्मय व तद्रूप सा हो जाता है कि वह स्वयं को भी भूल सा जाता है, मात्र भगवान के दिव्य आनंद का अनुभव होने लगता है, यही है स्वरूप शून्यता । २० / लोगस्स - एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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