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________________ आत्मज्ञान के लिए आत्मान्वेषण, सत्य की खोज, तत्त्वों की जिज्ञासा तथा आत्मानुभूति के बीजों का वपन करके चैतन्य की वेदिका पर आनंद का वटवृक्ष उगाने की अपेक्षा है । उस वटवृक्ष के अनेक बीजों में एक शक्तिशाली और उर्वर बीज है आवश्यक सूत्र में वर्णित 'चतुर्विंशतिस्तव - लोगस्स ।' सीमित शब्दों में असीमित व्यक्तित्वों की गौरवगाथा के अमिट हस्ताक्षर व मंत्राक्षर इस स्तुति में विद्यमान हैं। इसकी साधना सर्वकाल एवं सर्वदृष्टि से मंगलकारी, कल्याणकारी, शुभंकर और सिद्धिदायक है । यह स्तव शक्ति का धाम है। इसके प्रत्येक पद्य में समाया हुआ है आनंद, आनंद, आनंद, परमानंद । प्रस्तुत कृति लोगस्स में अन्तर्निहित परमानंद व अनेक रहस्यों को उद्घाटित करने का एक विनम्र प्रयास है 1
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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