SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव - नाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुतेरक्षां, परमेष्ठि-पदैः सदा । तस्य न स्यात् भयं व्याधिराधिश्चापि कदाचन ॥८॥ अर्थ नवपद स्वरूप और जगत् का सारभूत यह परमेष्ठी नमस्कार आत्म रक्षा के लिए वज्रपंजर के समान है। उसका मैं स्मरण करता हूँ ॥१॥ ॐ णमो अरहंताणं। यह मंत्र मुकुट के रूप में मस्तक पर रहा हुआ है । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं। यह मंत्र मुँह पर श्रेष्ठ वस्त्र के रूप में रहा हुआ है ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं । यह मंत्र अतिशायी अंग रक्षक है । ॐ नमो उवज्झायाणं । यह मंत्र दोनों हाथ में रहे हुए मजबूत शस्त्र की तरह है ||३|| ॐ नमो लोए सव्व साहूणं । यह मंत्र पैर के मंगलकारी पावपेश है । एसोपंचणमुक्कारो । यह मंत्र पैर के नीचे की वज्रशिला है ॥४॥ सव्वपावपणासणो। यह मंत्र चारों दिशाओं में वज्रमय किले की तरह है । मंगलाणं च सव्वेसिं। यह मंत्र खेर की लकड़ी के अंगारे की खाई है । (अर्थात् बोलते समय यह सोचना कि किले के बाहर चारों तरफ खेर की लकड़ी के अंगारे में खाई भरी हुई है ।) ॥५॥ पढमं हवइ मंगलं । यह किले के ऊपर वज्रमय ढक्कन है । इस पद के अन्त में स्वाहा मंत्र भी समझ लेना चाहिए ॥ ६ ॥ परमेष्ठी पदों में प्रकट हुई महाप्रभावशाली यह रक्षा सब उपद्रवों का नाश करने वाली है, ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है ॥७॥ परमेष्ठी पदों के द्वारा इस प्रकार जो निरन्तर आत्मरक्षा करते हैं, उन्हें किसी भी प्रकार का भय, शारीरिक व्याधि और मानसिक पीड़ा कभी नहीं सताती। यह मंत्र सर्व उपद्रवों का नाश करने वाला है ॥ ८ ॥ विधि सैनिक जिस प्रकार कवच धारण कर अपने शरीर की सुरक्षा करता है, वैसे साधक अनिष्ट शक्तियों से बचने के लिए "वज्रपंजर - स्तोत्र" का प्रयोग करता है। सर्वप्रथम दायें हाथ के अंगूठे सहित चारों अंगुलियों पर क्रमशः "ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हृः” – इन पांच बीजाक्षरों को तीन बार बोलकर स्थापित करता है । दायें अंगूठे पर - 'हां', तर्जनी पर 'ही' मध्यमा पर 'हूं', अनामिका पर 'हौं', कनिष्ठा पर 'हः' मंत्र को स्थापित करता है । फिर हाथ का उपयोग अंग न्यास के लिए करता है । १५४ / लोगस्स - एक साधना - २
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy