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________________ लयबद्ध जाप हृदय रोग की समस्या के लिए महान औषध है। “हां ही हूं हों हं हः" हृदय के लिए यह उपयोगी मंत्र है यह अनेक लोगों के अनुभवों से प्रमाणित है। 'ॐ अर्ह' (आनंद-केन्द्र पर) ध्वनि ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिए उत्तम है। ये सारे संदर्भ इस तथ्य को पुष्ट करते हैं कि किसी भी द्रव्य की ऊर्जा को पकड़ने और उसको दूसरों तक पहुँचाने के लिए उस वस्तु में विद्यमान विद्युत क्रम को समझने की अपेक्षा रहती है। इसके लिए प्राचीन ऋषियों ने एक विधि निकाली। उन्होंने अग्नि को जलते हुए देखा। अग्नि की तीव्र लौ से 'र' ध्वनि का उन्होंने साक्षात्कार एवं श्रवण किया। वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अग्नि से 'र' ध्वनि उत्पन्न होती है अतः 'र' से अग्नि उत्पन्न की जा सकती है। बस 'र' अग्नि बीज के रूप में मान्य हो गया। इसी प्रकार पृथ्वी की स्थूलता से 'लं' ध्वनि का निर्माण हुआ। कोई तरल पदार्थ जब स्थूल होने की प्रक्रिया से गुजरता है तो 'लं' ध्वनि होती है। जल प्रवाह से 'वं ध्वनि प्रकट होती है और 'वं' से जल भी पैदा किया जा सकता है। रडार आदि का आविष्कार इसी प्रक्रिया के बल पर हुआ था। मंत्र वादियों तथा मंत्र द्रष्टाओं ने इन्हीं तत्त्वों एवं तथ्यों के अनुसार मंत्रों की रचनाएं की हैं। इस प्रकार वर्गों को शक्ति समुच्चय के साथ पकड़ा गया। उदाहरणार्थ लोगस्स के प्रथम परमेष्ठी वाची 'अहँ' (अरहंत) शब्द को ही लें। अहं मूल शब्द था। अहं में 'अ' प्रपंच जगत का प्रारम्भ करने वाला है और 'ह' उसकी लीनता का द्योतक है। अहं के अन्त में बिंदु (.) यह लय का प्रतीक है। बिंदु से ही सृजन है और बिंदु में ही लय है। योगियों ने अनुभव किया सृजन और मरण की इस क्रिया में जीवन शक्ति का अभाव है अर्थात् जीवन शक्ति को चैतन्य देने वाली अग्नि शक्ति का अभाव है अतः ऋषियों ने 'अहं' को अहँ का रूप दिया। उसमें अग्नि-बीज शक्तिवाची 'र' को जोड़ा। इससे जीवात्मा को उठकर परमात्मा तक पहुँचने की शक्ति प्राप्त हुई। इस प्रकार 'अहं' का विज्ञान बड़ा सुखद आश्चर्य पैदा करने वाला सिद्ध हुआ। 'अ' प्रपंच जीव का बोधक। बंधन बद्ध जीव का बोधक है और 'ह' शक्तिमय पूर्ण जीव का वाचक है लेकिन 'र' क्रियमाण क्रिया से युक्त-उद्दीप्त और परम उच्च स्थानों में पहुँचे परमात्म तत्त्व का बोधक है। इस प्रकार विभिन्न कार्यों के लिए शब्दों को मिलाकर मंत्र बनाये जाते हैं। मंत्रों के प्रकार, प्रयोजन, प्रभाव अनेक हैं। उनको विधिवत समझने और जीवन में उतारने का संकल्प होने पर मंत्र विज्ञान स्पष्ट और कार्यकर होगा। यह एक वैज्ञानिक मान्यता है कि ध्वनि का हमारे चित्त की स्थितियों और विचारों की श्रृंखला पर अमित प्रभाव पड़ता है। हम हमारे व्यवहारिक जीवन में यह अनुभव भी करते हैं कि मंदिर में सुनाई देने वाली वीणा या बांसुरी की तान से चित्त पवित्र
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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