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________________ अप्राणों का प्राण है। किसी संत से पूछा गया भक्ति की पूर्णता क्या? प्रत्युत्तर में उसने कहा-अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं को मिटा देना भक्ति की पूर्णता है। हनुमान के लिए राम ही सर्वस्व थे। जयाचार्य के लिए वीतराग सर्वस्व हैं। भक्ति के लिए तीर्थंकर सर्वश्रेष्ठ पात्र होते हैं। 'विघ्न मिटे स्मरण किया'-जयाचार्य का यह आस्था सूत्र आज लाखों लोगों का आस्था सूत्र बन चुका है। गुणीजनों का गुणगान आत्मविशुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण हेतु है। जयाचार्य ने एक प्रसंग में लिखा है गुणवन्त ना गुण गावता, तीर्थंकर गोत बंधाय । शंका हुवै तो देखल्यो, ज्ञाता सूत्र रै माय ॥ शायद जयाचार्य इस तथ्य से भलिभांति परिचित थे भक्ति ऐसी कीजिए जामें लखै न कोय । जैसे मेंहदी पात में बैठी रंग लकोय ॥ ऐसी भक्ति से भाव शुद्धि, हृदय शुद्धि, क्रिया शुद्धि, कुल शुद्धि और वाक् शुद्धि होती है। इसलिए भक्ति को शोकमोहभयापहा आत्मरजस्तमोपहा कहा गया है। भक्ति वह शक्ति है जिसको प्राप्त कर लेने के बाद समर्थहीन व्यक्ति भी प्रभूत सामर्थ्य का स्वामी हो जाता है। ___ उनके व्यक्तित्व एवं रचनाओं को पढ़ने से ऐसा लगता है कि वे अन्यान्य विशेषताओं के साथ-साथ एक भक्त कवि भी थे। बाहरी और आन्तरिक विक्षेप उपस्थित होने पर उन्होंने अर्हत् की स्तुति, तपस्वी की स्तुति, अपने आराध्य पूर्व आचार्यों की स्तुति का सहारा लिया। उनके स्तुति मान से विक्षेप खत्म हो गये, स्थिति निरापद बन गई। विघ्नहरण, मुणिन्द मोरा, भिक्षु म्हारे प्रगट्या आदि रचनाएं इन संकट के विशेष क्षणों में निर्मित हुईं। ऐसी प्राण घातक घटनाएं भी एक मात्र स्तुति गान से टल गईं। ___ ज्योतिर्धर जयाचार्य इस क्षेत्र में अनेक प्रयोगों के प्रवक्ता थे, अनेक उपसर्गों के भोक्ता थे। उनके निवारणार्थ उन्होंने जिन धार्मिक अनुष्ठानों का प्रयोग किया था उनमें एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग था स्तुति गान।* बाह्य विक्षेपों का समाधान कर पाने के बाद उनका ध्यान आन्तरिक विक्षेपों की ओर गया। इन आन्तरिक विक्षेपों से विकृतियां प्रभावित होती हैं, मन चंचल बनता है, इंद्रिया असीमित हो उठती हैं, अध्यात्म में अवरोध खड़ा हो जाता है। इन विक्षेपों के उपशम हेतु उन्होंने अर्हत् स्तुति का आलंबन लिया। चौबीस तीर्थंकरों की अलग-अलग तों में रचना करके अध्यात्म साधना में लीन साधकों * विशेष जानकारी के लिए देखें-“जय-जय जय महाराज" (पुस्तक) १४४ / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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