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________________ अन्य अनेक अप्रकट शक्तियां भी कार्य करती हैं, वे हैं• मंत्र योजक का मनोभाव उसकी लोकोपकारक वृत्ति उसका तपोबल उसका निश्छल सद्भाव उसकी निर्मल सदाशयता • उसका मंत्र शक्ति के प्रति अखण्ड विश्वास लोगस्स में उक्त सभी विशेषताओं का समवेत्, समायोजन होने के कारण इसकी शक्ति एवं शुचिता अनुपम है, अद्वितीय है। यह आगम वाणी स्वाध्याय, ध्यान, जप, कायोत्सर्ग, अनुप्रेक्षा, स्तुति, प्रायश्चित विशुद्धि इत्यादि अनेक रूपों में साधना के क्षेत्र में प्रयुक्त और पुनरावर्तित होती रहती है। ध्वनि पुद्गल की पर्याय है, जो 'वीचि तरंग न्यायेन' प्रसारित होती है। अर्थात् ध्वनि एक जगह से दूसरी जगह लहरों के माध्यम से पहुँचती है। यह जैन दर्शन की धारणा विज्ञान सम्मत्त है। मंत्र जप के रूप में किसी भी मंत्र की पुनरावृत्ति की महत्ता को कर्ण अगोचर तरंगों से समझा जा सकता है। इन तरंगों की उत्पत्ति हेतु ओसीलेटर यंत्र का मुख्य भाग-बिल्लोर की प्लेट को बिजली की ए.सी. धारा से जोड़ने पर उसकी सतह कंपन करने लगती है। इस प्लेट का कंपन प्रति सैकण्ड कई लाख से कम नहीं होता। इस प्रकार सतह के कंपन के कारण चारो ओर की वायु में शब्द की सूक्ष्म लहरें उत्पन्न हो जाती हैं। एक सैकण्ड में लाख शब्द का बोलना तो मनुष्य की शक्ति से परे है अतः साधक मंत्र की तरंगों को कर्ण अगोचर बनाने हेतु उसे हजारों लाखों बार पुनरावर्तित करता है। कुछ वर्षों पूर्व ग्राहक और नील नामक दो वैज्ञानिकों ने आस्ट्रेलिया के मोलबोर्न नगर की एक भारी भीड़ वाली सड़क पर शब्द शक्ति का वैज्ञानिक प्रयोग किया और सार्वजनिक प्रदर्शनों में सफल रहे। परीक्षण का माध्यम भी एक निर्जीव कार जिसे वे अपने इशारों से नचाना चाहते थे और यह सिद्ध करना चाहते थे कि शब्द शक्ति की सहायता से बिना किसी चालक के कार चल सकती है। हजारों की संख्या में लोगों ने देखा कि संचालक के कार 'स्टार्ट' कहते ही कार चलना प्रारंभ हो गई, 'गो' को सुनते ही गति पकड़ ली। लोग देखते ही रह गये कि निर्जीव कार के भी कान होते हैं। जैसे ही थोड़ी दूर जाकर संचालक ने कहा 'हाल्ट' तो वह कार तुरंत रुक गई। यह कोई हाथ की सफाई का काम नहीं था वरन् उसके पीछे विज्ञान का एक निश्चित सिद्धान्त काम कर रहा था। ग्राहक के हाथ में एक छोटा सा
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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