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________________ नाड़ी प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शरीर में ७२,००० नाड़ियां हैं। नाड़ी शब्द का सामान्य अर्थ धारा या प्रवाह होता है। अतीन्द्रिय दृष्टि संपन्न व्यक्ति को ये प्रकाश धाराओं के रूप में दिखाई पड़ती है। आधुनिक काल में नाड़ी को 'तंत्रिका' के अर्थ में लिया जाता है, किंतु वास्तव में नाड़ियां सूक्ष्म तत्त्वों से निर्मित हैं। चक्रों की भाँति नाड़ियाँ भी भौतिक शरीर का अंश नहीं हैं, हालाँकि वे भौतिक शरीर में स्थित तन्त्रिकाओं के समान हैं। नाड़ियाँ वे सूक्ष्म नलिकायें हैं, जिनमें से प्राण-शक्ति का प्रवाह होता है। अतीन्द्रिय शरीर की बहुसंख्य नाड़ियों में से दस प्रमुख हैं और इनमें से तीन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं, जिन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना कहते हैं। इन तीनों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सुषुम्ना है। अतीन्द्रिय शरीर की सभी नाड़ियाँ (इड़ा एवं पिंगला भी) सुषुम्ना के अधीन हैं। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना सुषुम्ना नाड़ी मेरुदण्ड के केन्द्र में स्थित एक आध्यात्मिक पथ है। यह मूलाधार चक्र से निकलती है और सिर के ऊपरी भाग में स्थित सहसार में समाप्त होती है। इड़ा नाड़ी मूलाधार की बायीं ओर से निकलकर सर्पाकार आकृति में मेरुदण्ड में स्थित प्रत्येक चक्र को क्रमशः दायीं और बायीं ओर से पार करती हुई अन्त में आज्ञा-चक्र के बायें भाग में समाप्त होती है। पिंगला नाड़ी मूलाधार की दायीं ओर से निकलकर प्रत्येक चक्र को इड़ा की विपरीत दिशा में पार करती हुई आज्ञा-चक्र के दाहिने भाग में समाप्त होती है। इड़ा और पिंगला हमारे भीतर प्रवाहित दो विपरीत शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इड़ा निष्क्रिय, अन्तर्मुखी और स्त्री के गुणों वाली है; इसे चन्द्र नाड़ी भी कहा जाता है, जबकि पिंगला सक्रिय, बहिर्मुखी और पुरुष के गुणों वाली है; इसे सूर्य नाड़ी कहा जाता है। निष्कर्ष चक्र मनुष्य के ऊपरी शरीर में नहीं रहते, वे आत्मिक शरीर में निवास करते हैं जिन्हें बाह्य इन्द्रियों द्वारा अनुभव नहीं किया जा सकता है। इन्हें पहचानने के लिए मन की एक विभिन्न प्रक्रिया द्वारा अभ्यास किया जाता है। भिन्न प्रकार के चक्र, रंग, मंत्र आदि का निर्माण शारीरिक व आध्यात्मिक केन्द्रों से संबंध स्थापित करने के लिए किया गया है। जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का उस चक्र की अभिव्यक्ति के सभी पक्षों से सूक्ष्म संबंध स्थापित होता है। वस्तुतः मानव मस्तिष्क में संस्कार चक्र प्रतिकित होते हैं। अतः चक्रों की प्रतीकात्मक खोज के द्वारा हम १३२ / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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