SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चात् कुछ क्षणों के लिए आज्ञा चक्र ( दर्शन - केन्द्र और ज्योति - केन्द्र) पर भी ध्यान करना चाहिए । ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिए भी यह उत्तम प्रयोग है । 1 मणिपुर चक्र मेरुदण्ड में नाभि के ठीक पीछे मणिपुर चक्र है । मणिपुर का अर्थ होता है, मणियों का नगर । यह नाम इसलिए दिया गया है कि अग्नि का केन्द्र होने के कारण यह मणि की भांति प्रकाशमान, प्राण-शक्ति और ऊर्जा का विकिरण करने वाला है। इस चक्र का वर्णन दस पंखुडियों वाले चमकीले पीले कमल के रूप में किया गया है। कमल के भीतर अग्नि तत्त्व का यंत्र, अग्नि के समान लाल त्रिभुज और बीजमंत्र 'रं' अंकित है । मणिपुर चक्र ( सूर्य क्षेत्र) मुख्य रूप से पाचन की आवश्यक क्रिया और भोजन के चयापचय से संबंधित है। यह आमाशय की ग्रंथियों, अग्नाशय, पित्ताशय आदि के कार्यों को नियंत्रित करता है । जो पोषक तत्त्वों को पचाने एवं ग्रहण करने के लिए आवश्यक पाचक द्रव्यों, अम्लों, विविध रसों का उत्पादन एवं स्राव करते हैं । इस चक्र में अग्नि तत्त्व है 1 वृक्क के ऊपर स्थित उपवृक्क (एड्रीनल ग्रंथि) का संबंध भी मणिपुर से है। आपातकालीन परिस्थियों में वे रक्त में एड्रीनल का स्राव करती है। इससे सभी शारीरिक क्रियाएं तीव्र हो जाती हैं और मन चौकस एवं सावधान हो जाता है । साथ ही हृदय गति बढ़ जाती है, श्वास तीव्र हो जाती है और अन्य कई परिवर्तन परिलक्षित होते हैं। मनुष्य में सामान्य रूप से पलायन या संघर्ष करने की जो क्षमता होती है उससे कहीं अधिक क्रियाशीलता के लिए मानव शरीर तत्पर हो जाता है । जो व्यक्ति आलस्य, निराशा या अपचन और मधुमेह जैसे पाचन संस्थान के दोषों से पीड़ित है उन्हें मणिपुर चक्र पर इस भावना के साथ ध्यान करना चाहिए कि इस क्षेत्र से ऊर्जा का विकिरण हो रहा है । इस चक्र पर एकाग्रता के लिए देदीप्यमान सूर्य या अग्नि के गोले का मानस दर्शन करें। अनुभव करें कि ऊर्जा प्रकाश के रूप में इस क्षेत्र से विकीर्ण होकर सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त हो रही है । जप इस चक्र पर मुनिसुव्रत भगवान का ध्यान अथवा जप करें। इसके मध्य में अर्हद्भ्यो नमः, उसके ऊपर की पंखुड़ी पर सिद्धेभ्योनमः उसके पश्चात क्रमशः आचार्येभ्यो नमः, उपाध्यायेभ्यो नमः, साधुभ्यो नमः श्री दर्शनाभ्यो नमः, श्री ज्ञानाभ्यो नमः श्री चारित्राय नमः, श्री तपाय नमः - ऐसा जप अथवा ध्यान करें । एक-एक पंखुड़ी पर कुछ समय तक भी ध्यान टिका सकते हैं। चक्र और तीर्थंकर जप / १२७
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy