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________________ निष्कर्ष उपरोक्त विश्लेषण के निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि ग्रह, उपग्रह से जो रश्मियां निकलती हैं, उनका भी शारीरिक वर्गणाओं के अनुसार अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव होता है । विभिन्न रंगों के शीशों के द्वारा सूर्य की रश्मियों को एकत्रित कर शरीर पर डाला जाये तो स्वास्थ्य या मन पर उनकी विभिन्न प्रतिक्रियाएं होती हैं। संगठित दशा में हमें तत्काल उनका असर मालुम पड़ता है । असंगठित दशा और सूक्ष्म रूप में उनका जो असर हमारे ऊपर होता है उसे हम पकड़ नहीं सकते । इसी प्रकार ज्योतिर्विद्या में उल्का की ओर योग-विद्या में विविध रंगों की प्रतिक्रियाएं भी उनकी रश्मियों के प्रभाव से होती हैं । यह सारा बाहरी प्रभाव है । अपनी आन्तरिक वृत्तियों का भी हम पर प्रभाव पड़ता है। ध्यान, जप अथवा मानसिक एकाग्रता से चंचलता की कमी होने से आत्मशक्ति का विकास होता है। मानसिक अनिष्ट चिंतन में वे प्रतिकूल वर्गणाएं अनुकूल प्रभाव डालती हैं। जप की मुख्यतः तीन निष्पत्तियां हैं - आत्म विकास, आत्मशांति और आनंद की प्राप्ति | मुख्यतः मंत्र जप से होने वाले लाभ तथा चमत्कार के चार कारण सुझाये जा सकते हैं १. मंत्र द्रष्टा का आध्यात्मिक बल २. शब्दों का अपना सामर्थ्य ३. ध्वनि प्रकंपन ४. शब्दाकृतियों के नायक अधिदेवता नमस्कार महामंत्र का जप अथवा लोगस्स आदि आध्यात्मिक स्तवन समता, शांति, संबल, सफलता, सबलता और स्वास्थ्य देता है । सबका हित साधक होने के कारण इसके जप से सभी ग्रह अपना अनुकूल प्रभाव दिखाते हैं। इसी तथ्य की पुष्टि आचार्य श्री तुलसी की निम्नोक्त पंक्तियों में खोजी जा सकती है"अशुभानि प्रलयन्त्वखिलानी तत् स्मर्णार्जित - सुकृत भरैः । अर्थात् पंचपरमेष्ठी के स्मरण से अर्जित सुकृत समूह के बारे में प्रलयता को प्राप्त हो जाते हैं । संदर्भ १. कर्म बंधन और मुक्ति की प्रक्रिया - पृ./८५ अशुभ कर्म ग्रह शांति और तीर्थंकर जप / १२१
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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