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________________ १२. ग्रह शांति और तीर्थंकर जप ज्योतिष के द्वारा किसी ग्रह के संबंध में पूर्व जानकारी हासिल करके रक्षात्मक कार्यवाही के द्वारा व्यक्ति अपनी सुरक्षा कर सकता है। जैसे ज्योतिष के द्वारा किसी ग्रह के विपरीत प्रभाव की जानकारी मिली तो तप, जप, ध्यान आदि से उस ग्रह के परिणाम में परिवर्तन लाया जा सकता है। भारत के प्राचीन ऋषियों एवं दिव्य द्रष्टाओं ने अपनी अद्भुत ज्ञान क्षमता के बल पर नभमंडल का अध्ययन किया और उसका संबंध मनुष्य से जोड़कर जो विधान बनाया, वह ज्योतिष के नाम से स्थापित हो गया । ज्योतिष-विज्ञान, दर्शन - शास्त्र का एक अंग है, जिसका अध्ययन बहुत सूक्ष्म एवं गहन है 1 ज्योतिष के संबंध में जन धारणा कुछ भी रही हो लेकिन इनके मूल तथ्यों की सच्चाई को कोई इन्कार नहीं कर सकता। यह सर्वविदित तथ्य है कि सूर्य, चन्द्रमा अन्य ग्रहों की रश्मियां पृथ्वी पर पड़ती हैं । यही कारण है कि पुष्प प्रातः खिलते हैं, सायं सिमट जाते हैं । बिल्ली की नेत्र पुतलियां चन्द्रकला के अनुसार घटती बढ़ती रहती हैं। मनुष्य की राशि उनके मनोमस्तिष्क, व्यवहार और सम्पूर्ण स्वभाव का एक्स-रे है । प्राचीन आचार्यों ने अपनी नाम राशि के अनुसार नमस्कार महामंत्र के मंत्रों का नियोजन किया है, जिसके द्वारा अपने गुणात्मक पक्ष को उजागर रखा जा सकता है। बारह राशियों, तथा उससे संबंधित शरीर के अंग-प्रत्यंग ' तथा महामंत्र का जप', अपनी राशि के अनुसार, निम्न चार्ट से समझकर लाभान्वित हुआ जा सकता है ग्रह शांति और तीर्थंकर जप / ११३
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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