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________________ 1 1 लोगस्स की ३२ अक्षर की एक गाथा की अपेक्षा से आठ गाथाएं होती हैं। एक माला में लोगस्स की ८६४ गाथाओं की स्वाध्याय हो जाती है। दो माला और ऊपर ३४ लोगस्स गिनने से दो हजार गाथाओं की स्वाध्याय हो जाती है। इसी प्रकार पूरे नमस्कार महामंत्र की एक माला में २२६ गाथा लगभग हो जाती हैं। अतएव नौ माला गिनने से २००० से ऊपर गाथाओं की स्वाध्याय हो जाती है । (नमस्कार महामंत्र में ६८ अक्षर हैं । ६८ अक्षर की दो गाथा और चार अक्षर ऊपर होते हैं ।) नमोत्थुणं की आठ गाथा और २४ अक्षर अधिक होते हैं । उसकी दो माला और चौदह णमोत्थुणं ओर गिनने पर २००० गाथाओं की स्वाध्याय हो जाती है। प्रायश्चित आदि की विशुद्धि के लिए इस रूप में भी स्वाध्याय मान्य है । ४. प्रतिक्रमण के पांचवें कायोत्सर्ग आवश्यक में - लोगस्स सूत्र का स्मरण किया ही जाता है किंतु शेष समय नवपद आराधना आदि तपों में भी ध्यान के समय लोगस्स सूत्र का ही उपयोग करने की परम्परा है। इसके अलावा स्वप्नादिक-दोष आदि के प्रायश्चित की विशुद्धि के लिए विविध संख्या में लोगस्स सूत्र का ही उपयोग किया जाता है । निष्कर्ष निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि अध्यात्म के क्षेत्र में निर्जरा की प्रक्रिया कर्म मल के विशोधन की प्रक्रिया है । भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित निर्जरा के बारह प्रकार/ तपस्याओं के कारण विवक्षित है । निर्जरा का दसवां प्रकार स्वाध्याय, ( जिसमें जप का समावेश हो जाता है) ग्यारहवां प्रकार ध्यान तथा पहला प्रकार अनशन का है । जब तपस्या ( अनशन) के साथ नमस्कार महामंत्र अथवा लोगस्स मंत्र का जप तथा ध्यान किया जाता है तो इस मणि- काञ्चन योग का ऐसा जादुई प्रभाव होता है कि बाह्य और आन्तरिक मल अतिशीघ्र विसर्जित होने लगते हैं । उनसे प्रक्षालित और विशोधित होकर चेतना उसी प्रकार निर्मल बन जाती है जिस प्रकार अग्नि से तपा सोना । संदर्भ १. दसवैकालिक - ६/४/ २. ३. ४. ५. ६. संवाद भगवान से- पृ./३६ विनय आराधना - पृ./२१६ वही - पृ. / २१६ वही - पृ./२२० वही - पृ. / २२० लोगस्स और तप / १०७
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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