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________________ १०. लोगस्स और तप भारतीय धार्मिक प्रथाओं में व्रत को बहुत महत्त्व दिया गया है। जैन आगमिक दृष्टि से केवल निर्जरा के लिए तप का विधान है। आत्मशुद्धि के लक्ष्य से किये गये तप जप से प्रासंगिक फल के रूप में ऋद्धियां-सिद्धियां सहज ही अपना प्रभुत्व व वर्चस्व स्थापित कर लेती हैं सभी तीर्थंकरों ने कठोर तपस्याएं की। भरत चक्रवर्ती ने अपने पूर्वभव में ६६ लाख मासखमण किये तो श्रीकृष्ण वासुदेन ने अपने पूर्व भव में ६६ लाख मासखमण किये। भारतीय धार्मिक प्रथाओं में व्रत (तप) को बहुत महत्त्व दिया गया है। विभिन्न जातियों के लोग अपने विशेष पर्यों पर व्रत अथवा उपवास करते हैं। व्रत उपवासों को इतना महत्त्व देने का दृष्टिकोण केवल धर्म या पुण्य के साथ ही नहीं जुड़ा है अपितु शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी अत्यन्त प्रभावशाली जैन धर्म और तप जैन आगमिक दृष्टि से केवल निर्जरा के लिए तप जप करने का विधान है। आत्मशुद्धि के लक्ष्य से किये गये तप जप से प्रासंगिक फल के रूप में ऋद्धियांसिद्धियां सहज ही अपना प्रभुत्व व वर्चस्व स्थापित कर लेती हैं। भगवान महावीर ने तप का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा है१. नो इहलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा। २. नो परलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा। ३. नो कित्तिवण्णसद्द सिलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा। ४. नन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिढेज्जा। अर्थात् इहलोक (वर्तमान जीवन की भोगाभिलाषा) के निमित्त तप नहीं करना चाहिए। परलोक (पारलौकिक भोगाभिलाषा) के निमित्त तप नहीं करना चाहिए। परलोक (पारलौकिक भोगाभिलाषा) के निमित्त तप नहीं करना चाहिए। लोगस्स और तप / ६५
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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