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________________ स्वकथ्य जीवन अनंत रहस्यों का अथाह सागर है। इसके अतल में असंख्येय अनमोल मणिमुक्ता छिपे हुए हैं। पदार्थों में आसक्त बना मनुष्य उनकी उपेक्षा करता है। वह अपने से भिन्न नक्षत्र, सौरमंडल व जड़ पदार्थों की खोज तथा उपलब्धि में अपना सारा जीवन दांव पर लगा देता है परन्तु “मैं कौन हूँ" इस रहस्य को जानने की दिशा में उत्कंठित नहीं होता है। मोमबत्ती जलाते हुए शिक्षक ने विद्यार्थियों से पूछा- “यह प्रकाश कहाँ से आया?" गुरु के इस प्रत्युत्तर में एक प्रतिभाशाली बालक कन्फ्यूशियस ने एक फूंक से उस मोमबत्ती को वुझाते हुए कहा-"गुरुदेव! आपके सवाल का जवाब दें उससे पूर्व आप हमें यह बताये कि वह प्रकाश कहाँ गया?" गुरु शिष्य का यह संवाद अध्यात्म जगत् के उपरोक्त रहस्य "मैं कौन हूँ" के अनुसंधान का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अध्याय हो सकता है। इस संवाद की गहराई में अवगाहन करने से एक सत्य तथ्य प्रतिभाषित होता है कि पदार्थ जगत् की रोशनी दियासलाई से आती है और फूंक लगाने से चली जाती है पर आत्मजगत् की रोशनी शाश्वत है केवल उसे उद्घाटित करने की कला चाहिए। उस कला की पारंगतता के लिए दृष्टि को बाइफोकल बनाने से दोनों जगत् दृष्टिगोचर होते रहेंगे। 'जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पेठ' महाकवि बिहारी की उक्त उक्ति को जीने वाले जीवन और साधना के रहस्यों को तथा मंत्र व विद्या की अलौकिकता को आत्मसात् एवं उद्घाटित करने की कला हासिल करते हैं। वे ऋषि मनीषी अपनी अन्तश्चक्षु से सत्य का साक्षात्कार करते हैं और संसार को उसकी शाब्दिक अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। आत्म साक्षात्कार की इस कला के कोविद अर्हत् ऋषभ से सम्राट भरत ने, अर्हत् अजित से सम्राट सगर ने, अर्हत् नेमि से पांडवों ने तथा अर्हत् महावीर से राजा श्रेणिक ने अपने-अपने समय में एक ही प्रकार की
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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