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________________ शास्त्रों का वाचन, मंत्रों का कीर्तन, स्तोत्रों का स्मरण और स्तवन किया जाता है परन्तु लोगस्स आगम वर्णित ऐसा मंत्र है जिसका वाचन, कीर्तन, स्मरण, स्तवन, स्वाध्याय, सब कुछ किया जा सकता है। अतः यह महान रहस्यों एवं उनके गूढार्थों को अपने भीतर समेटे हुए है। इसका प्रत्येक शब्द, प्रत्येक अक्षर, प्रत्येक चरण, प्रत्येक पद्य अपने आप में सिद्ध मंत्राक्षर के रूप में प्रतिष्ठित है। जैनों के पास यह एक बहुत बड़ी आध्यात्मिक निधि है। इसमें आध्यात्मिक उन्नयन की ओर से ले जाने का भी आधार है तो लौकिक संकट आदि निवारण की भी अद्भुत क्षमता है। इसके प्रत्येक श्लोक और प्रत्येक श्लोक के एक-एक पद में भावों का जो लालित्य और जो सागर लहरा रहा है, उसमें गहराई से अवगाहन करके ही जानाजा सकता है कि वहाँ कैसे-कैसे बहुमूल्य रत्न छुपे हुए हैं। सच्चे अर्थों में यह स्तव गागर में सागर की कहावत चरितार्थ करता है। लोगस्स : छंद रचना ___ लोगस्स का प्रथम पद्य शिलोग छंद (अनुष्टुप छंद) में और शेष पद्य गाहा छंद में आबद्ध है। ___ गाहा छंद-संस्कृत में जिस छंद को आर्या कहा जाता है प्राकृत में उसे गाहा या गाथा कहा जाता है, उसके लक्षण निम्नांकित हैं__ “यस्या पादे प्रथमे द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेषु अष्टादश द्वितीये चतुर्थ के पंचदशार्या ।" अर्थात् जिसके पहले और तीसरे चरण में १२ मात्राएं, दूसरे चरण में अठारह मात्राएं और चतुर्थ चरण में पन्द्रह मात्राएं हों, वह आर्या या गाहा छंद कहलाता है। लोगस्स शाश्वत या अशाश्वत वर्तमान स्थिति रूप में तो लोगस्स सूत्र शाश्वत नहीं हो सकता। क्योंकि वर्तमान लोगस्स सूत्र भगवान श्री महावीर के बाद की रचना है। परन्तु प्रत्येक तीर्थंकर के शासन में आवश्यक सूत्र होता है और महाविदेह क्षेत्र में भी होता है। अतएव उनके गणधर अपने-अपने शासन के योग्य उत्कीर्तन सूत्र की रचना करते ही होंगे। भाव की दृष्टि से लोगस्स सूत्र शाश्वत है किंतु शब्द की दृष्टि से नहीं। कुछ मनीषी पुरुषों की यह मान्यता है कि तीर्थंकरों के नामवाले पद्य-२, ३, ४ अशाश्वत हैं, वे वर्तमान चौबीसी के नामानुसार परिवर्तित होते रहते हैं, शेष चार * छंद या अंश के चतुर्थ अंश को पाद या चरण कहते हैं। ६४ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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