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________________ लोगस्स-शाश्वत सुख का राजपथ सचमुच लोगस्स शाश्वत सुख का राजपथ है। इस स्तवन से समाधि का द्वार खुलता है, प्रज्ञा अनावृत्त होती है, सूक्ष्म शक्तियों की जागृति के साथ-साथ ज्ञान-आनंद व तेज शक्ति प्रकट होती है। ज्ञान, आनंद व तेज-ये तीनों महाशक्तियां हमारे अपने ही भीतर हैं। तीनों का स्रोत एक आत्मा है। आत्मा की तीन प्रमुख महाशक्तियां हैं१. अनंत ज्ञान २. अनंत आनंद ३. अनंत शक्ति ज्ञान सरस्वती है, आनंद लक्ष्मी (श्री) है और बल दुर्गा है। आत्म जागरण से इन तीनों महाशक्तियों का जागरण अवश्यंभावी है। आत्मा केवल श्रोतव्य और मननीय ही नहीं है वह साक्षात् करणीय है। साक्षात्कार प्रयोग सापेक्ष है। दुनिया में सबसे बड़ी बात है स्वयं की स्मृति, स्वयं से स्वयं की मुलाकात। प्रेक्षा ध्यान का यह ध्येय सूत्र परम संबोधि का सूत्र है “संपिक्खए अप्पगमप्पएणं"-आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। इसी प्रकार-अप्पणा सच्चमेसेज्जा-स्वयं सत्य को खोजो, अपना अनुशीलन स्वयं करो। अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो -सतत आत्मा की रक्षा करो। ये सब आत्म केन्द्रित महापुरुष के ही स्वर हैं, किसी बहिरस्थ व्यक्ति के नहीं। भगवान महावीर की इस वाणी को एक शायर की पंक्तियों में निम्न प्रकार से दर्शाया गया है दुनियां में उसने बड़ी बात कर ली। खुद अपने से जिसने मुलाकात कर ली। वास्तव में मैत्री, क्षमा, समता, सहिष्णुता, धैर्य जैसे आत्मगुण ओढ़े नहीं जाते, यह हमारी निजी सम्पदा है, हमारा अपना स्वभाव है। जब वीतराग साधना तक पहुँचना हमारा ध्येय बनता है, तब साहस, धैर्य, अभय, पुरुषार्थ, विश्वास और दिशा निर्णय की प्रज्ञा स्वतः जाग जाती है। इस प्रकार लोगस्स का अभिप्राय हुआ-आत्मा-परमात्मा का सम्मिलन, उसका दर्शन और चिंतन। इस स्तवन में परमात्मा के अनुपम गुणों का और वीतराग भाव का अपूर्व वर्णन अन्तर्निहित है। ६२ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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