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________________ इसी प्रकार एक ही मंत्र के व्यक्ति, क्षेत्र, काल आदि के भेद से विभिन्न परिणाम हो सकते हैं। वस्तुतः जप, ध्यान अथवा आध्यात्मिक स्तुतियों से स्तोता को अद्भुत शक्ति मिलती है, वह पराक्रमशाली बन जाता है, उसे एक विशेष प्रकार का संबल मिलता है और वह अतिशीघ्र ही साधना की उच्चतम स्थिति पर पहुँच सकता है। जैन दर्शन में अर्हत् व सिद्ध स्तुति को अपना गुणगत वैशिष्ट्य प्राप्त है। • जीवन को सौम्य, निर्मल, सात्विक एवं सर्वांग पूर्ण बनाने की एक दिव्य साधना है-अर्हत् स्तुति। अस्तित्त्व बोध, आत्मगुण वृद्धि, वृत्ति परिष्कार और अपूर्व समाधि की अलभ्य आराधना है-अर्हत, स्तुति। जीवन की प्रवृत्ति को अध्यात्मवाद की ओर उन्मुख करने की चिन्मय उपासना है-अर्हत् स्तुति। किसी भौतिक वस्तु की मांग नहीं, अर्हतों के समान सम स्थिति प्राप्त करने की प्रबल भावाभिव्यक्ति की भांति संभृत भव्य भावना है-अर्हत् स्तुति। आत्मशक्ति, प्राण शक्ति व चैतन्य शक्ति को जागृत करने की आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक अभिव्यंजना है-अर्हत् स्तुति। स्तुति के प्रमुख तत्त्व बूंद अपने अस्तित्व को सागर में विसर्जित कर देती है उसी प्रकार भक्त अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को आराध्य के प्रति समर्पित कर देता है। आध्यात्मिक स्तुतियों का पर्यवेक्षण करने से स्तुति के निम्न तत्त्व प्रकट होते हैं१. आत्म-समर्पण २. साक्षात्कार की उत्कृष्ट अभिलाषा ३. एकाग्रता ४. प्राक्तन् संस्कार ५. आत्मविलय ६. अद्वैत की प्रतिष्ठा ७. शरणागति १. आत्म समर्पण समर्पण स्तुति का प्रमुख तत्त्व रहा है। समर्पण में भक्ति का स्वर भी मुखर होता है और स्तुति भी प्रस्फुटित होती है। समर्पण में आत्मनिवेदन के साथ-साथ स्तुति और मनोविज्ञान / ४७
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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